छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है |
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है |
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है |
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों, चाल बदलकर जाने वालों
चँद खिलौनों के खोने से, बचपन नहीं मरा करता है |
लाखों बार गगरियाँ फ़ूटी,
शिकन न आयी पर पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों,
लाख करे पतझड़ कोशिश पर, उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी ना लेकिन गंध फ़ूल की
तूफ़ानों ने तक छेड़ा पर,
खिड़की बंद ना हुई धूल की
नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों के की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है।
- गोपालदास "नीरज"
Wednesday, June 8, 2011
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों
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छिप-छिप अश्रु बहाने वालों,
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21 comments:
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी ना लेकिन गंध फ़ूल की
तूफ़ानों ने तक छेड़ा पर,
खिड़की बंद ना हुई धूल की
नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों के की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है।
- गोपालदास "नीरज"
vivek ji bahut prasiddh kavi kee kavita prastut kee hai aapne inki bahut see kavitayen padhi hain aur inke kavitva ke bhi ham kayal hain.aabhar.
वाह आज लेकर आये है आप मोती जिसे बार-बार सजाने का जी चाहे बधाई
लाखों बार गगरियाँ फ़ूटी,
शिकन न आयी पर पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों,
लाख करे पतझड़ कोशिश पर, उपवन नहीं मरा करता है।
बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ! बेहतरीन रचना!
प्रेरित करती कविता।
लाखों बार गगरियाँ फ़ूटी,
शिकन न आयी पर पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों,
लाख करे पतझड़ कोशिश पर, उपवन नहीं मरा करता है।
bahut hi gahri baat
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है
नीरज की यह कविता युवावस्था में पढ़ी थी. यह आज भी ताज़ा है.
लाखों बार गगरियाँ फ़ूटी,
शिकन न आयी पर पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल पहल वो ही है तट पर.......
very inspiring lines and giving an important message to move on with life instead of behaving as dead with a setback.
Nice one !!!
नीरज जी की इस प्रसिद्द गीत को पुनः पढवाने के लिए आभार विवेक जी.... सादर...
जीवन का मर्म छुपा है इन पंक्तियो मे
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी ना लेकिन गंध फ़ूल की
तूफ़ानों ने तक छेड़ा पर,
खिड़की बंद ना हुई धूल की.....nice ,,
तुम सत्य हो हम सत्य हे ,बस जिंदगी के यही अनमोल तथ्य है ....
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी ना लेकिन गंध फ़ूल की
तूफ़ानों ने तक छेड़ा पर,
खिड़की बंद ना हुई धूल की......प्रेरित करती कविता।
गोपाल दास नीरज की सुन्दर रचना पढवाने के लिए आभार
jeewan kaa sundar gyaan hai , neeraj ji ko pranaam
वाह .. बहुत अच्छी पोस्ट !!
प्रस्नोत्तरी कविता ! उस आराजकता और दुःख की घडी को दर्शाती हुयी !
नीरज जी की खूबसूरत कविता पढ़वाने के लिये आभार !
कवि " नीरज " की कविताओं पर कोई क्या टिपण्णी करे ? आधुनिक के गीतों के राज कुंवर हैं .नीरज जी की यह रचना पहली बार पढवाने के लिए आभार....
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.
-विवेक जैन
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों,
लाख करे पतझड़ कोशिश पर, उपवन नहीं मरा करता है।
is rachna ko main bhi dalne wali rahi apne blog par ,kyonki banasthali me jab padhti thi to ise geet ke roop me sikha raha aur aaj bhi hum ise gungunate hai .aapke yahan dekh behad khushi hui .
शायद मेरे गीत किसी ने गाये हैं ,इसीलिए बे -मौसम बादल छाये हैं .नीरज जी को कवि सम्मेलनों के १९६० के दशक से डी ए वी पोस्ट ग्रेज्युएट कोलिज बुलंदशहर के मंच से अन्यत्र भी हाल फिलाल तीन -चार बरस पहले "हिंदी भवन "में कविता पाठ करतेदेख आनंद उठाया है .अच्छा गीत परोसा है आपने विवेकजी उनकी गीत -गंगा से .आभार .
Kitni sargarbhit baaten kahi hai Neeraj jee ne....aabhar....
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