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Friday, August 5, 2011

एक गीत और कहो

सरसों के रंग-सा
महुए की गंध-सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
होठों पर आने दो
रुके हुए बोल
रंगों में बसने दो
याद के हिंदोल
अलकों में झरने दो
गहराती शाम
झील में पिघलने दो
प्यार के पैगाम
अपनों के संग-सा
बहती उमंग-सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
मलयानिल झोंकों में
डूबते दलान
केसरिया होने दो
बाँह के सिवान
अंगों में खिलने दो
टेसू के फूल
साँसों तक बहने दो
रेशमी दुकूल
तितली के रंग-सा
उड़ती पतंग-सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
-पूर्णिमा वर्मन

9 comments:

  1. सुंदर शब्दों में लिखी शानदार रचना

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  2. खुबसूरत कविता पढवाने के लिए धन्यवाद....

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  3. बहुत सुन्दर गीत...आभार..

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  4. सुन्दर कविता ||

    आभार ||

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  5. विवेक जी -पूर्णिमा जी की बेहद खूबसूरत रचना हमें पढवाने हेतु हार्दिक धन्यवाद .

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  6. पूर्णिमा वर्मन जी की यह कविता मनोरम लगी।

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  7. ...क्‍या भारतीयों तक पहुच सकेगी यह नई चेतना ?
    Posted by veerubhai on Monday, August 8
    Labels: -वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई), Bio Cremation, जैव शवदाह, पर्यावरण चेतना, बायो-क्रेमेशन /http://sb.samwaad.com/
    अंगों में खिलने दो
    टेसू के फूल
    साँसों तक बहने दो
    रेशमी दुकूल
    तितली के रंग-सा
    उड़ती पतंग-सा
    एक गीत और कहो
    मौसमी वसंत का।
    -पूर्णिमा वर्मन
    राग -विहाग सा मीठा गीत .

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