सरसों के रंग-सा
महुए की गंध-सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
होठों पर आने दो
रुके हुए बोल
रंगों में बसने दो
याद के हिंदोल
अलकों में झरने दो
गहराती शाम
झील में पिघलने दो
प्यार के पैगाम
अपनों के संग-सा
बहती उमंग-सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
मलयानिल झोंकों में
डूबते दलान
केसरिया होने दो
बाँह के सिवान
अंगों में खिलने दो
टेसू के फूल
साँसों तक बहने दो
रेशमी दुकूल
तितली के रंग-सा
उड़ती पतंग-सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
-पूर्णिमा वर्मन
सुंदर शब्दों में लिखी शानदार रचना
ReplyDeleteखुबसूरत कविता पढवाने के लिए धन्यवाद....
ReplyDeleteसुन्दर गीत ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत...आभार..
ReplyDeleteसुन्दर कविता ||
ReplyDeleteआभार ||
बेहतरीन।
ReplyDeleteविवेक जी -पूर्णिमा जी की बेहद खूबसूरत रचना हमें पढवाने हेतु हार्दिक धन्यवाद .
ReplyDeleteपूर्णिमा वर्मन जी की यह कविता मनोरम लगी।
ReplyDelete...क्या भारतीयों तक पहुच सकेगी यह नई चेतना ?
ReplyDeletePosted by veerubhai on Monday, August 8
Labels: -वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई), Bio Cremation, जैव शवदाह, पर्यावरण चेतना, बायो-क्रेमेशन /http://sb.samwaad.com/
अंगों में खिलने दो
टेसू के फूल
साँसों तक बहने दो
रेशमी दुकूल
तितली के रंग-सा
उड़ती पतंग-सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
-पूर्णिमा वर्मन
राग -विहाग सा मीठा गीत .