This blog is dedicated to hindi poetry of old as well as new poets. गीत जब मर जायेंगे तो क्या यहाँ रह जायेगा, एक सिसकता आँसुओं का कारवाँ रह जायेगा....
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Friday, June 10, 2011
बूँद टपकी नभ से
बूँद टपकी एक नभ से
किसी ने झुक कर झरोखे से
कि जैसे हँस दिया हो
हँस रही-सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो
ठगा-सा कोई किसी की
आँख देखे रह गया हो
उस बहुत से रूप को
रोमांच रोके सह गया हो।
बूँद टपकी एक नभ से
और जैसे पथिक छू
मुस्कान चौंके और घूमे
आँख उसकी जिस तरह
हँसती हुई-सी आँख चूमे
उस तरह मैंने उठाई आँख
बादल फट गया था
चंद्र पर आता हुआ-सा
अभ्र थोड़ा हट गया था।
बूँद टपकी एक नभ से
ये कि जैसे आँख मिलते ही
झरोखा बंद हो ले
और नूपुर ध्वनि झमक कर
जिस तरह द्रुत छंद हो ले
उस तरह
बादल सिमट कर
और पानी के हज़ारों बूँद
तब आएँ अचानक।
- भवानी प्रसाद मिश्र
बूँद टपकी एक नभ से
ReplyDeleteकिसी ने झुक कर झरोखे से
कि जैसे हँस दिया हो
हँस रही-सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो
ठगा-सा कोई किसी की
आँख देखे रह गया हो
उस बहुत से रूप को
रोमांच रोके सह गया हो।
ह्र्दय से निकली सुन्दर अभिव्यक्ति्…..….
कविवर भवानी प्रसाद मिश्र जी की रचना "बूँद टपकी नभ से" पढवाने के लिए धन्यवाद्
ReplyDeleteभवानी प्रसाद जी की रचना प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद...
ReplyDeleteबूँद टपकी एक नभ से
ReplyDeleteऔर जैसे पथिक छू
मुस्कान चौंके और घूमे
आँख उसकी जिस तरह
हँसती हुई-सी आँख चूमे
उस तरह मैंने उठाई आँख
बादल फट गया था
चंद्र पर आता हुआ-सा
अभ्र थोड़ा हट गया था। ... achhi rachna padhne ko mili
समयानुकूल रचना. आभार.
ReplyDeleteबुनी हुई रस्सी के प्रणेता को सुनवा आज आपने निहाल किया .आभार ।
ReplyDeleteसब का अपना पाथेय पंथ एकाकी है ,
अब होश हुआ जब इने गिने दिन बाकी हैं .
बूँद टपकी एक नभ से
ReplyDeleteऔर जैसे पथिक छू
मुस्कान चौंके और घूमे
आँख उसकी जिस तरह
हँसती हुई-सी आँख चूमे
उस तरह मैंने उठाई आँख
बादल फट गया था
चंद्र पर आता हुआ-सा
bhavani prasad ji kee sundar kavita aur aapki sarthak prastuti.badhai.
बूँद टपकी एक नभ से
ReplyDeleteऔर जैसे पथिक छू
मुस्कान चौंके और घूमे
आँख उसकी जिस तरह
हँसती हुई-सी आँख चूमे
उस तरह मैंने उठाई आँख
बादल फट गया था
चंद्र पर आता हुआ-सा
अभ्र थोड़ा हट गया था।
bahut hi khoobsurat rachna .aapki tippani padhkar hans padi ,aabhari hoon ,
Bhavani prasad ji ki sunder rachna padhvane ke liye abhar .
ReplyDeleteबूँद टपकी एक नभ से
ReplyDeleteये कि जैसे आँख मिलते ही
झरोखा बंद हो ले
और नूपुर ध्वनि झमक कर
जिस तरह द्रुत छंद हो ले
उस तरह
बादल सिमट कर
और पानी के हज़ारों बूँद
तब आएँ अचानक।
bahut sunder kavita
saader
rachana
ठगा-सा कोई किसी की
ReplyDeleteआँख देखे रह गया हो
उस बहुत से रूप को
रोमांच रोके सह गया हो।.....
आपके ब्लॉग पर कुछ ऐसी भी रचनाएं भी पढ़ने को मिल जायेंगी जहाँ तक पाठक पहुंचा न हो ..अच्छा संकलन आभार
इतनी कोमल एवं भावपूर्ण रचना पढवाने के लिये धन्यवाद !
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति् !!
ReplyDeleteभवानी प्रसाद जी को पढ़ना वाकई सुखद है,साभार !
ReplyDeleteबूँद टपकी एक नभ से
ReplyDeleteये कि जैसे आँख मिलते ही
झरोखा बंद हो ले...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! उम्दा रचना!
Behad sunder rachna padhwai.....Dhanywad
ReplyDeleteभवानी प्रसाद जी की भावनायें बरसाती बूँदों सी झर कर असीम आनन्द मे सराबोर कर गयी। गहरी भावनाओं की अभिव्यक्ति सुन्दर शब्दों मे। शुभकामनायें।
ReplyDeleteoh!
ReplyDeleteकितना अंतर है, इन स्तरीय रचनाओं
और हमारी सतही रचनाओं में,
रोमांच के बाद अक्सर
अवसाद का शिकार हो जाता हूँ ||
Bahut hi lajawab .. shukriya is rachna ke liye ...
ReplyDeleteशुक्रिया इतनी सुन्दर रचना पढवाने के लिये...आभार
ReplyDeleteमिश्र जी की रचना पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteएम सिंह
....सुन्दर रचना पढवाने के लिये...आभार
ReplyDeleteभवानी प्रसाद जी ने एक बूंद की गरीमा प्रस्तुत की है , पर आज - कल बूंद को कौन पूछता है ..सभी झुण्ड के आगे नतमस्तक है ! भवानी प्रसाद जी बधाई के योग्य है !
ReplyDeleteसुन्दर रचना पढवाने के लिये धन्यवाद|
ReplyDeleteआहा...आनंद...वाह...बेजोड़ कविता.
ReplyDeleteगुनगुनाती हुई गिरती हैं फलक से बूँदें
कोई बदली तेरी पाजेब से टकराई है
नीरज
अनुपम कृति, पढ़वाने का आभार।
ReplyDeleteबूँद टपकी एक नभ से
ReplyDeleteकिसी ने झुक कर झरोखे से
कि जैसे हँस दिया हो
हँस रही-सी आँख ने जैसे
इतनी प्यारी सी रचना पढवाने का बहुत बहुत शुक्रिया
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबूँद टपकी एक नभ से
ReplyDeleteये कि जैसे आँख मिलते ही
झरोखा बंद हो ले
और नूपुर ध्वनि झमक कर
जिस तरह द्रुत छंद हो ले
इस बारिश से मन भीग गया...
बहुत सुन्दर...
विवेक जैन जी!
ReplyDeleteमिश्र जी के सामने एक सपना था-स्वराज्य का सपना। जिसकी आशा और आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति उनकी रचनाओं में मिलती है। तब छायावाद और रहस्यवाद के आभामंडल तले रचनाएं संस्कृत-निष्ठ, परिष्कृत और छंदानुशासन में निबद्ध हुआ करती थीं। उस युग में अभिव्यक्ति का स्वर इतना तीखा न था। आज उदारीकरण और उदरीकरण का वेग है। इस दौर में बहुत तेजी से मूल्यों का क्षरण हुआ हैं। आप जो रचना-श्रंखला जोड़ रहे हैं। उससे तब और अब के परिवर्तन को समझने में मदद मिलेगी। इस अभियान को जारी रखिए। इस प्रयास के लिए बधाई।
भवानी दादा की तो बात ही अलग । धन्यवाद उनकी रचना पढवाने को
ReplyDeleteबूँद टपकी एक नभ से
ReplyDeleteऔर जैसे पथिक छू
मुस्कान चौंके और घूमे
आँख उसकी जिस तरह
हँसती हुई-सी आँख चूमे
उस तरह मैंने उठाई आँख
बादल फट गया था
चंद्र पर आता हुआ-सा
अभ्र थोड़ा हट गया था।
बहुत सुंदर कविता प्रस्तुत करने के लिए आभार।
What shall I say
ReplyDeleteIts simply stunning !!
भवानी जी की इस कालजयी रचना को हम तक पहुंचाने का शुक्रिया।
ReplyDelete---------
हॉट मॉडल केली ब्रुक...
लूट कर ले जाएगी मेरे पसीने का मज़ा।
भवानी जी की इस कालजयी रचना को हम तक पहुंचाने का शुक्रिया।
ReplyDelete---------
हॉट मॉडल केली ब्रुक...
लूट कर ले जाएगी मेरे पसीने का मज़ा।
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद
ReplyDelete-विवेक जैन
बहुत आभार...तलाश थी इस रचना की..
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना..
ReplyDelete:-)
bahut pyari rachna
ReplyDeleteshubhkamnayen