बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुँकनी जैसी माँ
बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ
चिड़ियों की चहकार में गूँजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ
बीवी बेटी बहन पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिनभर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा माथा
आँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ
- निदा फ़ाज़ली
nida fazli ji kee ye nazm man ko gahre taq chhoo leti hai .vivek ji aapne ye yahan prastut kar bahut sarahniy karya kiya hai.
ReplyDeletenida faazli ko maine padha tha... is rachna ki sondhi khushboo me maza aa gaya
ReplyDeleteआभार निदा फ़ाज़ली साहब की रचना प्रस्तुत करने का.
ReplyDeleteनिदा फाजली साहब की "माँ "को मूर्त करती इस रचना को परोसने के लिए विवेक भाई जैन का आभार .तू जिए हज़ारों साल .
ReplyDeletemaa ki mahima ko vishleshit karti Nida ji ki gazal prastut kar aapne sabhi pathhkon ka man moh liya hai .aabhar .
ReplyDeleteनिदा फ़ाज़ली की नज़्म देने के लिए आपका आभार. माँ की छवि को क्या उकेरा है निदा ने, मान गए.
ReplyDeleteसब उपाधियाँ माँ के सम्मुख एक हो जाती हैं।
ReplyDeleteKhubsurat rachana se aanandit karvaane ke liye dhanyvaad...
ReplyDeleteKhubsurat rachana se aanandit karvaane ke liye dhanyvaad...
ReplyDeleteनिदा फाज़ली की खूबसूरज नज़्म पढ़वाने के लिए शुक्रिया!
ReplyDeleteआपकी बदौलत फ़िर एक बार निदा फ़ाजली याद आ गये
ReplyDeleteनिदा फाज़ली जी की ये नज़्म दिल को छू गयी! बहुत सुन्दर लगा! आभार!
ReplyDeletenida fazali ki ye shandar poem k liye shuriya hain
ReplyDeleteshandar blog yaar...
will follow it....
showing the selfless love and devotion of a mother.
ReplyDeleteAwesome read !!!
निदा जी की या ग़ज़ल जितनी बार पढ़ों उतना ही ज़्यादा मज़ा देती है ... शुक्रिया इस लाजवाब कृति के लिए ....
ReplyDeleteनिदा फाज़ली जी की खूबसूरज नज़्म के लिए शुक्रिया......
ReplyDeletesondhi si rachnaa ....dhanyawaad
ReplyDeleteबान की खूर्रीं खाट के ऊपर
ReplyDeleteहर आहट पर कान धरे
मेरे ब्लाग पर आपके आगमन का धन्यवाद ।
ReplyDeleteआपको नाचीज का कहा कुछ अच्छा लगा, उसके लिए हार्दिक आभार
आपका ब्लाग भी अच्छा लगा । बधाई
आभार निदा फ़ाज़ली साहब की रचना प्रस्तुत करने
ReplyDeleteनिदा फाजली की उपमाये बेहद संवेदनशील होती है
ReplyDeleteनिदा फाज़ली साहेब की बेमिसाल रचना ! हर प्रतिमान अनोखा है और हर पंक्ति की सम्प्रेषणीयता बहुत ही गहन एवं असरकारी है ! इतनी अद्भुत रचना को पढ़वाने के लिये आपका शुक्रिया !
ReplyDeleteनिदा फ़ाज़ली की यह नज़्म बहुत ही उम्दा है विवेक जी. आपका जायका मानना पड़ेगा. निदा फ़ाज़ली साहेब को ज्यादा नहीं पढ़ा है, लेकिन उनकी एक नज़्म है - तुम्हारे ख़त. बहुत सादगी लिए मुखड़ा है; " वो जो तुमने लिखे थे कभी कभी मुझको, मै आज सोच रहा हूँ, उन्हें जला डालूँ ! ........." इस सुन्दर पोस्ट के लिए आभार.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग मुंशी प्रेमचंद पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया......आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ......पहली ही पोस्ट दिल को छू गयी.....बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट .....शानदार...प्रशंसनीय |
ReplyDeleteकभी फुर्सत लगे तो मेरे अन्य ब्लॉग भी देखिये आपको एक ब्लॉग में अन्य के लिंक मिल जायेंगे |
ऐसी भावनात्मक और सोंधी रचना पढ़ने का अवसर देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteमाँ पर निदा फ़ाज़ली जी की बेहतरीन रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार.
ReplyDeleteबाँट के अपना चेहरा माथा
ReplyDeleteआँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ
ये कविता तो मुझे पूरी की पूरी याद है...
फिर से पढना बहुत बहुत अच्छा लगा...शुक्रिया
निदा फाजली की बेहतरीन पंक्तियों को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.. बहुत अच्छा लगा...
ReplyDeleteविवेक जी धन्यवाद सुन्दर संकलन आप का निदा फाजली साहेब की ये नज्म माँ के सभी रूप का वर्णन करती जगा जाती है हम सब को
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर५
बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
ReplyDeleteहर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ
चिड़ियों की चहकार में गूँजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ
बहुत खूब..हमेशा की तरह...गहन अनुभूतियों और जीवन दर्शन से परिपूर्ण शब्दों में गहरी बात.
हार्दिक शुभकामनायें।
khoobsurat nazm .
ReplyDeletemaa se badh kar bhin kya kuchh Hai !
आप सबका बहुत बहुत आभार,
ReplyDelete-विवेक जैन