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Saturday, July 30, 2011

आर्य

हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी

भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है

यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं
विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं
संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े
पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े

वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे
वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा

संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी
निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी
फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में

वे मोह बंधन मुक्त थे, स्वच्छंद थे स्वाधीन थे
सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे
मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे
विख्यात ब्रह्मानंद नद के, वे मनोहर मीन थे

- मैथिलीशरण गुप्त

10 comments:

  1. गुप्त जी की इतनी सुन्दर रचना पढवाने के लिए शुक्रिया....

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  2. महत्वपूर्ण जानकारी ||
    बहुत अच्छा लगा ||

    बधाई |

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  3. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की सुन्दर एवं राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत रचना पढवाने का बहुत-बहुत आभार विवेक जी ...

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  4. achchi rachna padhvaane ke liye shukriya.

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  5. प्रभावशाली पंक्तियाँ पढ़वाने का आभार।

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  6. गुप्त जी ने दसको पूर्व , जो चिंता जाहिर की थी वाही परिस्थितिया , आज भी मुह बाए कड़ी है ! सुन्दर प्रस्तुति बधाई!

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  7. गुप्त जी की ये चिंता...आज भी...प्रासंगिक है...

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  8. Itni acchhi rachna padhwane ke liye dhanyawad..

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  9. वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे
    वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे
    वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
    परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा

    मैथिली शरण गुप्त जी की इस कालजयी रचना को प्रस्तुत करने के लिए आभार।

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  10. -मैथिलीशरण गुप्तजी की ये रचना कैसे भूल सकती हूँ..कव्य पाटः प्रतियोगिता में मेरी बेटी ने इसे सस्वर गाकर प्रथम स्थान प्राप्त किया था...

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