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Sunday, December 18, 2011

अबकी बार

बहुत लड़े हम अबकी बार
जीवन की गहमा गहमी में आते रहे
उतार चढ़ाव

किसने देखे किसने जाने
इस दुनिया के ताने बाने
कितनी बातें कितनी शर्तें
तर्कों पर तर्कों की पर्तें
बूत गए हम दोनो तो हैं एक नाव की
दो पतवार

लंबी बहसों का हलदायक
लड़ना अपनों का परिचायक
सच्चे मन से बहने वाले
आँसू होते हैं फलदायक
कड़वी दवा हमें देती है कभी कभी
असली उपचार

चलो काम को कल पर टालें
कुछ पल तो हम साथ बितालें
साथ बुने जो सपने मिल कर
आओ उनको पुनः संभालें
हाथ मिलाकर आज सजालें अपने सुख
का पारावार

-पूर्णिमा वर्मन

8 comments:

  1. बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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  2. सुन्दर सन्देश देती हुई रचना ....

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  3. इधर आपने रमानाथ अवस्थी की कविता "सो न सका" (दिसम्बर 09 )से कवियों का संक्षिप्त जीवन परिचय देना शुरू कर दिया. बहुत बहुत आभार. हालांकि आपने 18 /12 की पोस्ट 'अबकी बार' - 'पूर्णिमा वर्मन' का परिचय नहीं दिया. परन्तु कविता के प्रति आपका यह समर्पण देखते ही बनता है.
    नयी पुरानी कविताओं का यह संगम कवि ह्रदय ब्लोगर्स को कविता की अजस्र धारा में बहने को प्रेरित करता रहेगा ऐसी कामना है......

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  4. लंबी बहसों का हलदायक
    लड़ना अपनों का परिचायक
    सच्चे मन से बहने वाले
    आँसू होते हैं फलदायक
    कड़वी दवा हमें देती है कभी कभी
    असली उपचार...........badi hi sacchi or achhi baat batai aapne...kabhi kabhi kadbe bol bhi mithi marhum ban jate hai......pehli bar aapke blog pe aai hu.....namste....

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  5. bahut sarthak rachna ....
    man ko chhooti hui si ...

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  6. heart touching poem thank u

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  7. बहुत ही सुन्दर , प्यारी रचना
    बेहतरीन अभिव्यक्ति....
    :-)

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