बहुत लड़े हम अबकी बार
जीवन की गहमा गहमी में आते रहे
उतार चढ़ाव
किसने देखे किसने जाने
इस दुनिया के ताने बाने
कितनी बातें कितनी शर्तें
तर्कों पर तर्कों की पर्तें
बूत गए हम दोनो तो हैं एक नाव की
दो पतवार
लंबी बहसों का हलदायक
लड़ना अपनों का परिचायक
सच्चे मन से बहने वाले
आँसू होते हैं फलदायक
कड़वी दवा हमें देती है कभी कभी
असली उपचार
चलो काम को कल पर टालें
कुछ पल तो हम साथ बितालें
साथ बुने जो सपने मिल कर
आओ उनको पुनः संभालें
हाथ मिलाकर आज सजालें अपने सुख
का पारावार
-पूर्णिमा वर्मन
वाह, बहुत ही अच्छी।
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश देती हुई रचना ....
ReplyDeleteइधर आपने रमानाथ अवस्थी की कविता "सो न सका" (दिसम्बर 09 )से कवियों का संक्षिप्त जीवन परिचय देना शुरू कर दिया. बहुत बहुत आभार. हालांकि आपने 18 /12 की पोस्ट 'अबकी बार' - 'पूर्णिमा वर्मन' का परिचय नहीं दिया. परन्तु कविता के प्रति आपका यह समर्पण देखते ही बनता है.
ReplyDeleteनयी पुरानी कविताओं का यह संगम कवि ह्रदय ब्लोगर्स को कविता की अजस्र धारा में बहने को प्रेरित करता रहेगा ऐसी कामना है......
लंबी बहसों का हलदायक
ReplyDeleteलड़ना अपनों का परिचायक
सच्चे मन से बहने वाले
आँसू होते हैं फलदायक
कड़वी दवा हमें देती है कभी कभी
असली उपचार...........badi hi sacchi or achhi baat batai aapne...kabhi kabhi kadbe bol bhi mithi marhum ban jate hai......pehli bar aapke blog pe aai hu.....namste....
bahut sarthak rachna ....
ReplyDeleteman ko chhooti hui si ...
heart touching poem thank u
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर , प्यारी रचना
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति....
:-)