Tuesday, December 18, 2012

कमल के बहाने

कैसे कह दूँ रूप तुम्हारा,
जैसे कोई खिला कमल है,
कैसे कह दूँ रंग तुम्हारा,
चाँदी-सा कोई चंद्रकमल है,
नीलकमल आँखें हैं तेरी,
रक्तकमल तेरा शृंगार,
कमलनाल की लोच लिए,
आमंत्रित करती हो अभिसार
गोधूलि -बेला में तेरे-
कर-कमलों में दीप सजे,
कमलपात पर किसी बूँद-सा,
ठिठका-सा एक स्वप्न- जगे

ये बिंब मेरे सब झूठ हुए-
ईंटों से बुनते शतदल में,
खो गई जागीर कमल की-
कंक्रीटों के जंगल में ।
कहाँ गए वो पोखर-गागर,
कहाँ गए वो ताल-तलैया,
मेढक-कछुए-झींगुर-जुगनू,
गिल्ली-डंडा, ता-ता-थैया,
घूँघट के कंज-पदों से मह-मह,
क्यों घाट सुहाने टूट गए?
चूड़ी से छुप चुगली करते,
मटके किससे फूट गए ?

अब धुँआ-धक्कीड़ शोर बहुत है,
बगुलों के ठिकानों पर,
मासूम मछलियाँ कैद हुई-
इन ऊँचे मकानों पर
जल रहा हरेक कमल है,
चुप है कोयल बागों में,
ये सब हमको दिखा करेंगे,
बच्चों की किताबों में

     - अमित कुलश्रेष्ठ

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर रचना।

Maheshwari kaneri said...

बहुत खुबसूरत..

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 26 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in 
पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!