सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
यह न मुझसे पूछना, मैं किस दिशा से आ रहा हूँ,
है कहाँ वह चरणरेखा, जो कि धोने जा रहा हूँ,
पत्थरों की चोट जब उर पर लगे,
एक ही "कलकल" कहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
मार्ग में तुमको मिलेंगे वात के प्रतिकूल झोंके,
दृढ़ शिला के खण्ड होंगे दानवों से राह रोके,
यदि प्रपातों के भयानक तुमुल में,
भूल कर भी भय न हो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
हो रहीं धूमिल दिशाएँ, नींद जैसे जागती है,
बादलों की राशि मानो मुँह बनाकर भागती है,
इस बदलती प्रकृति के प्रतिबिम्ब को,
मुस्कुराकर यदि सहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
मार्ग से परिचय नहीं है, किन्तु परिचित शक्ति तो है,
दूर हो आराध्य चाहे, प्राण में अनुरक्ति तो है,
इन सुनहली इंद्रियों को प्रेम की,
अग्नि से यदि तुम दहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
वह तरलता है हृदय में, किरण को भी लौ बना दूँ,
झाँक ले यदि एक तारा, तो उसे मैं सौ बना दूँ,
इस तरलता के तरंगित प्राण में -
प्राण बनकर यदि रहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
- रामकुमार वर्मा
Tuesday, August 9, 2011
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19 comments:
ise geet ki tarh gaane ki koshish ki maine...gazab lagaa... :)
humaara bhi hausla badhaaye:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/2011/08/blog-post.html
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/2011/08/blog-post_04.html
bahut khoobsurat kavita .Ramkumar varma ji ki kavita padhvaane ke liye aabhar.
अतुकांत के युग में तुकांत पढ़कर संगीत जैसा लगता है।
आभार इसे पढ़वाने का....
Very deep and full of emotions.
हिंदी के मूर्धन्य कवि राम कुमार वर्मा जी को पढवाने के लिए शुक्रिया...एक इलाहाबादी होने के नाते...फक्र भी होता है कि हम इनके बीच पले बढे हैं...
रामकुमार वर्माजी की सुन्दर कविता पढ़वाने का आभार...
इस तरलता के तरंगित प्राण में -
प्राण बनकर यदि रहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
verma ji ne bahut hi pyari rachna likhi hai ,sundar behad
Behad Sunder Rachna....
मार्ग से परिचय नहीं है, किन्तु परिचित शक्ति तो है,
दूर हो आराध्य चाहे, प्राण में अनुरक्ति तो है,
इन सुनहली इंद्रियों को प्रेम की,
अग्नि से यदि तुम दहो, तो ले चलूँ।
aabhar yah rachna padhvaane ke liye
saralta hi sabse behtar..
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
बहुत खुबसूरत अंदाज में ज़िंदगी की बात की है बधाई ...
सुन्दर गीत ....
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
बहुत सुन्दर।
प्राण बनकर यदि रहो, तो ले चलूँ।
अति सुंदर
बहुत भावपूर्ण रचना पढवाने के लिए आभार |
आशा
waah ..bahut sundar ..bhawmay rachna...
आपकी पोस्ट "ब्लोगर्स मीट वीकली "{४) के मंच पर शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें ,यही कामना है /सोमवार १५/०८/११ को आपब्लोगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं /
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