Friday, January 25, 2013

सारे जहाँ से अच्छा

सारे जहाँ से अच्छा
हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी
वो गुलिस्तां हमारा
                                               
परबत वो सबसे ऊँचा
हमसाया आसमां का
वो संतरी हमारा
वो पासबां हमारा
                                                
गोदी में खेलती हैं
जिसके हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिसके दम से
रश्क–ए–जिनां हमारा
                                                
मज़हब नहीं सिखाता
आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है
हिन्दोस्तां हमारा
 
— मुहम्मद इक़बाल

Sunday, January 20, 2013

ठुकरा दो या प्यार करो

देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं।
सेवा में बहुमुल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं॥

धूमधाम से साजबाज से वे मंदिर में आते हैं।
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं॥

मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी।
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी॥

धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं।
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं॥

कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं।
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं॥

नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी।
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ! चली आयी॥

पूजा और पुजापा प्रभुवर! इसी पुजारिन को समझो।
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो॥

मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ।
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ॥

चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो॥

- सुभद्रा कुमारी चौहान

Tuesday, January 15, 2013

उस नीलम की संध्या में

उस नीलम की संध्या में
हम तुम दो तारों जैसे !
वो घनी चांदनी शीतल
वो कथा कहानी से पल
वो नर्म दूब की शबनम
वो पुनर्जन्म सा मौसम

वो मलय समीरण झोंके
जीवन पतवारों जैसे !
उस नीलम की संध्या में
हम तुम दो तारों जैसे !

वो चांद का मद्‌धम तिरना
वो रात का रिमझिम गिरना
वो मौन का कविता करना
औ' बात का कुछ ना कहना

तारों के जगमग दीपक
नभ बंदनवारों जैसे !
उस नीलम की संध्या में
हम तुम दो तारों जैसे
-पूर्णिमा वर्मन

Thursday, January 10, 2013

गुलाबी चूड़ियाँ

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा –
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!

-नागार्जुन