Thursday, August 11, 2011

अमर स्पर्श


खिल उठा हृदय,
पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय!

खुल गए साधना के बंधन,
संगीत बना, उर का रोदन,
अब प्रीति द्रवित प्राणों का पण,
सीमाएँ अमिट हुईं सब लय।

क्यों रहे न जीवन में सुख दुख
क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख?
तुम रहो दृगों के जो सम्मुख
प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय!

तन में आएँ शैशव यौवन
मन में हों विरह मिलन के व्रण,
युग स्थितियों से प्रेरित जीवन
उर रहे प्रीति में चिर तन्मय!

जो नित्य अनित्य जगत का क्रम
वह रहे, न कुछ बदले, हो कम,
हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम,
जग से परिचय, तुमसे परिणय!

तुम सुंदर से बन अति सुंदर
आओ अंतर में अंतरतर,
तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर
वरदान, पराजय हो निश्चय!

- सुमित्रानंदन पंत ('युगपथ' से)

14 comments:

prerna argal said...

क्यों रहे न जीवन में सुख दुख
क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख?
तुम रहो दृगों के जो सम्मुख
प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय!
pantji ki bahut sunder shabdon main likhi rachanaa ko padhane ke liye aapka bahut bahut shukriyaa,

vidhya said...

वाह बहुत ही सुन्दर
रचा है आप ने

Maheshwari kaneri said...

बहुत ही सुन्दर रचना पढ़वाने के लिये धन्यवाद...

रेखा said...

पंतजी की रचना पढ़वाने के लिए आपका बहुत -बहुत धन्यवाद ....

ana said...

adbhut rachana....kamal ka shabd sanyojan....sundar

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सादर आभार इस खुबसूरत गीत को शेयर करने के लिए...
सादर...

Urmi said...

बहुत सुन्दर, शानदार और भावपूर्ण रचना! आभार!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/ण

amrendra "amar" said...

बहुत खूब . भावपूर्ण रचना

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सुन्दर रचना पढ़वाने के लिये धन्यवाद.......

Kailash Sharma said...

सुन्दर रचना पढवाने के लिए आभार..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति है!
रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
स्वतन्त्रतादिवस की भी बधाई हो!

ZEAL said...

Great collection !

प्रवीण पाण्डेय said...

आभार आपका।

दिगम्बर नासवा said...

पन्त जी की कालजयी रचना ... आभार ...