सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
करता नहीं क्यूं दूसरा कुछ बात चीत
देखता हूं मैं जिसे वो चुप तिरी मेहफ़िल में है।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है।
वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।
खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद
आशिक़ों का आज झमघट कूचा-ए-क़ातिल में है।
यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।
-राम प्रसाद बिस्मिल
Monday, August 15, 2011
सर फ़रोशी की तमन्ना
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15 comments:
जोश भरता है यह।
देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत बहुत बढ़िया सामयिक प्रस्तुति के लिए आभार!
जय हिंद!
आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
अमर रचना की प्रस्तुति......आभार.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
यह तो शहीद में ऐसे गाया है कलाकारों ने कि बस नये गाने वाले तो उनके सामने कहीं नहीं टिकेंगे। अद्भुत है यह!
बढ़िया प्रस्तुति
स्वतन्त्रता की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
जय हिंद जय भारत
स्वतंत्रता दिवस पर बिस्मिल की रचना पढवाने के लिए शुक्रिया...फुटकर में सुनी थी...आज पूरी पढ़ने का मौका मिला...
Great post for I-Day...These words inspire patriotism and every Indian loves it.
वाह वाह... ऐसे अवसर पर इस कालजयी रचना शेयर करने के लिए सादर आभार...
राष्ट्र पर्व की सादर बधाइयां...
सुन्दर प्रस्तुति स्वतंत्रता दिवस के शुभावसर पर.आपको भी स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है।
ये पंक्तियाँ हमेशा ही जोश से भर देती हैं ...
आभार !
आप को बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरे ब्लॉग पे आने के लिये अपना किमती समय निकला
और अपने विचारो से मुझे अवगत करवाया मैं आशा करता हु की आगे भी आपका योगदान मिलता रहेगा
बस आप से १ ही शिकायत है की मैं अपनी हर पोस्ट आप तक पहुचना चाहता हु पर अभी तक आप ने मेरे ब्लॉग का अनुसरण या मैं कहू की मेरे ब्लॉग के नियमित सदस्य नहीं है जो में आप से आशा करता हु की आप मेरी इस मन की समस्या का निवारण करेगे
आपका ब्लॉग साथी
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत प्रेरणा दायक बिस्मिल जी की रचना पढवाने के लिए धन्यवाद...
यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।
सामयिक प्रस्तुतिकरण
विस्मिल जी की कविता आज के रूप में काफी प्रासंगिक है !देखना है ऊंट किस करवट लेता है ! बधाई
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