Thursday, August 18, 2011
कोई मौसम तुम सा
कोई मौसम तुम सा आए
धरती का ये जीवन दुष्कर
देख देख प्रियतम वो अम्बर
झर झर नीर बहाए
कोई मौसम तुम सा आए
उठे गंध वह भीना भीना
जैसे ओढ़े आंचल झीना
धरा प्रणय रस सिक्त अघाये
कोई मौसम तुम सा आए
आए चुपके से कुछ अक्सर
जैसे शरद उंगलियों में भर
नटखट सखी गुदगुदा जाए
कोई मौसम तुम सा आए
या जैसे रक्तिम पलाश वन
अमलतास के स्वर्णिम तरुवर
धरती का आंचल रंग जाए
कोई मौसम तुम सा आए
-जया पाठक
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6 comments:
बहुत सुन्दर।
Great personification...:)
जया पाठक जी की ये कविता बहुत अच्छी लगी आभार विवेक जी.
.
वह दिन खुदा करे कि तुझे आजमायें हम .
सुंदर रचना पढवान के लिय शुक्रिया...
vivek ji
kya likhun ?--
itni sundar v behtreen shbdo se saji aapki rachna man ko bhigo gai .bahut bahut hi achhi lagi aapki yah kavita aur shbdo ka chayan to kya kahne
bahut bahut badhai
poonam
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
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