कल सहसा यह सन्देश मिला
सूने-से युग के बाद मुझे
कुछ रोकर, कुछ क्रोधित हो कर
तुम कर लेती हो याद मुझे ।
गिरने की गति में मिलकर
गतिमय होकर गतिहीन हुआ
एकाकीपन से आया था
अब सूनेपन में लीन हुआ ।
यह ममता का वरदान सुमुखि
है अब केवल अपवाद मुझे
मैं तो अपने को भूल रहा,
तुम कर लेती हो याद मुझे ।
पुलकित सपनों का क्रय करने
मैं आया अपने प्राणों से
लेकर अपनी कोमलताओं को
मैं टकराया पाषाणों से ।
मिट-मिटकर मैंने देखा है
मिट जानेवाला प्यार यहाँ
सुकुमार भावना को अपनी
बन जाते देखा भार यहाँ ।
उत्तप्त मरूस्थल बना चुका
विस्मृति का विषम विषाद मुझे
किस आशा से छवि की प्रतिमा !
तुम कर लेती हो याद मुझे ?
हँस-हँसकर कब से मसल रहा
हूँ मैं अपने विश्वासों को
पागल बनकर मैं फेंक रहा
हूँ कब से उलटे पाँसों को ।
पशुता से तिल-तिल हार रहा
हूँ मानवता का दाँव अरे
निर्दय व्यंगों में बदल रहे
मेरे ये पल अनुराग-भरे ।
बन गया एक अस्तित्व अमिट
मिट जाने का अवसाद मुझे
फिर किस अभिलाषा से रूपसि !
तुम कर लेती हो याद मुझे ?
यह अपना-अपना भाग्य, मिला
अभिशाप मुझे, वरदान तुम्हें
जग की लघुता का ज्ञान मुझे,
अपनी गुरुता का ज्ञान तुम्हें ।
जिस विधि ने था संयोग रचा,
उसने ही रचा वियोग प्रिये
मुझको रोने का रोग मिला,
तुमको हँसने का भोग प्रिये ।
सुख की तन्मयता तुम्हें मिली,
पीड़ा का मिला प्रमाद मुझे
फिर एक कसक बनकर अब क्यों
तुम कर लेती हो याद मुझे ?
- भगवतीचरण वर्मा
Saturday, August 27, 2011
कल सहसा यह सन्देश मिला
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श्रृंगार,
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10 comments:
अच्छा। सुन्दर गान। धन्यवाद!
जिस विधि ने था संयोग रचा,
उसने ही रचा वियोग प्रिये
मुझको रोने का रोग मिला,
तुमको हँसने का भोग प्रिये ।
सुख की तन्मयता तुम्हें मिली,
पीड़ा का मिला प्रमाद मुझे
फिर एक कसक बनकर अब क्यों
तुम कर लेती हो याद मुझे ?
अद्भुत पंक्तियाँ।
अह्ह़ा.... आनंद आ गया...
भगवती चरण वर्मा जी को पढ़ना हमेशा अद्भुत अनुभूति देता है...
सादर आभार...
भगवती चरण जी की इस अध्बुध रचना को पढ़ कर गहरी अनुभूति होती है ... धन्यवाद इस रचना के लिए ...
यह अपना-अपना भाग्य, मिला
अभिशाप मुझे, वरदान तुम्हें
जग की लघुता का ज्ञान मुझे,
अपनी गुरुता का ज्ञान तुम्हें ।
जिस विधि ने था संयोग रचा,
उसने ही रचा वियोग प्रिये
मुझको रोने का रोग मिला,
तुमको हँसने का भोग प्रिये ।
सुन्दर पक्तियां
भगवती चरण वर्मा जी को पढ़ना हमेशा अद्भुत अनुभूति देता है...
यह अपना-अपना भाग्य, मिला
अभिशाप मुझे, वरदान तुम्हें
जग की लघुता का ज्ञान मुझे,
अपनी गुरुता का ज्ञान तुम्हें ।
yahan asli moti milte hain her baar
भगवती चरण वर्मा जी की इतनी सुन्दर रचना पढने का सुयोग आपके सौजन्य से मिला, किन शब्दों में आपका आभार व्यक्त करूं..... उनकी कालजयी रचना "चित्रलेखा" पढ़ी, कई बार. पर आज उनका यह प्रेमगीत पढ़कर भावुक हो गया हूँ. गला रुंध सा गया है. अश्रुपूरित शब्दों में आपका पुनः आभार व्यक्त करता हूँ.
--
भगवती चरण वर्मा जी को पढ़ना हमेशा सुखद अनुभूति देता है ..आभार..
विवेकजी, नमस्कार...
आपका सन्देश मिला । क्षमा चाहूँगा आपने यूनिकोड में जिन धार्मिक किताबों के बारे ें जानकारी चाही है फिलहाल तो वो मेरी जानकारी में नहीं है । कोई अन्य सेवा जो मेरे लिये सम्भव हो कृपया बतावें । धन्यवाद सहित...
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