Friday, December 2, 2011

क्यों प्यार किया


जिसने छूकर मन का सितार,
कर झंकृत अनुपम प्रीत-गीत,
ख़ुद तोड़ दिया हर एक तार,
मैंने उससे क्यों प्यार किया ?


बरसा जीवन में ज्योतिधार,
जिसने बिखेर कर विविध रंग,
फिर ढाल दिया घन अंधकार,
मैंने उससे क्यों प्यार किया ?


मन को देकर निधियां हज़ार,
फिर छीन लिया जिसने सब कुछ,
कर दिया हीन चिर निराधार,
मैंने उससे क्यों प्यार किया ?


जिसने पहनाकर प्रेमहार,
बैठा मन के सिंहासन पर,
फिर स्वयं दिया सहसा उतार,
मैंने उससे क्यों प्यार किया ?

(1946 में रचित)
-शैलेन्द्र

4 comments:

चंदन कुमार मिश्र said...

तत्सम शब्दों से भरी लेकिन सरल कविता…

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर और सरल भावो से सजी अनुपम प्रस्तुति..

रेखा said...

सुन्दर प्रस्तुति ..

Kailash Sharma said...

बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति...