उस नीलम की संध्या में
हम तुम दो तारों जैसे !
वो घनी चांदनी शीतल
वो कथा कहानी से पल
वो नर्म दूब की शबनम
वो पुनर्जन्म सा मौसम
वो मलय समीरण झोंके
जीवन पतवारों जैसे !
उस नीलम की संध्या में
हम तुम दो तारों जैसे !
वो चांद का मद्धम तिरना
वो रात का रिमझिम गिरना
वो मौन का कविता करना
औ' बात का कुछ ना कहना
तारों के जगमग दीपक
नभ बंदनवारों जैसे !
उस नीलम की संध्या में
हम तुम दो तारों जैसे
-पूर्णिमा वर्मन
हम तुम दो तारों जैसे !
वो घनी चांदनी शीतल
वो कथा कहानी से पल
वो नर्म दूब की शबनम
वो पुनर्जन्म सा मौसम
वो मलय समीरण झोंके
जीवन पतवारों जैसे !
उस नीलम की संध्या में
हम तुम दो तारों जैसे !
वो चांद का मद्धम तिरना
वो रात का रिमझिम गिरना
वो मौन का कविता करना
औ' बात का कुछ ना कहना
तारों के जगमग दीपक
नभ बंदनवारों जैसे !
उस नीलम की संध्या में
हम तुम दो तारों जैसे
-पूर्णिमा वर्मन
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