तिब्बत से आये हुए
लामा घूमते रहते हैं
आजकल मंत्र बुदबुदाते
उनके खच्चरों के झुंड
बगीचों में उतरते हैं
गेंदे के पौधों को नहीं चरते
गेंदे के एक फूल में
कितने फूल होते हैं
पापा ?
तिब्बत में बरसात
जब होती है
तब हम किस मौसम में
होते हैं ?
तिब्बत में जब तीन बजते हैं
तब हम किस समय में
होते हैं ?
तिब्बत में
गेंदे के फूल होते हैं
क्या पापा ?
लामा शंख बजाते है पापा?
पापा लामाओं को
कंबल ओढ़ कर
अंधेरे में
तेज़-तेज़ चलते हुए देखा है
कभी ?
जब लोग मर जाते हैं
तब उनकी कब्रों के चारों ओर
सिर झुका कर
खड़े हो जाते हैं लामा
वे मंत्र नहीं पढ़ते।
वे फुसफुसाते हैं … तिब्बत...
तिब्बत…
तिब्बत-तिब्बत...
तिब्बत - तिब्बत - तिब्बत...
तिब्बत-तिब्बत ...
तिब्बत…
तिब्बत -तिब्बत...
तिब्बत ……
और रोते रहते हैं
रात-रात भर।
क्या लामा
हमारी तरह ही
रोते हैं
पापा ?
-उदय प्रकाश
जीवन परिचय- उदय प्रकाश (१ जनवरी, १९५२) एक कवि कथाकार और फिल्मकार हैं। इनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ सुनो कारीगर, अबूतर कबूतर, रात में हारमोनियम(कविता संग्रह), दरियायी घोड़ा, तिरिछ, और अंत में प्रार्थना, पॉलगोमरा का स्कूटर और रात में हारमोनियम (कहानी संग्रह) ईश्वर की आंच (निबंध और आलोचना संग्रह) पीली छतरीवाली लड़की (लघु उपन्यास) इंदिरा गांधी की आखिरी लड़ाई, कला अनुभव, लाल घास पर नीले घोड़े(अनुवाद) हैं। १९८० में अपनी कविता 'तिब्बत' के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित ,ओम प्रकाश सम्मान,श्रीकांत वर्मा पुरस्कार,मुक्तिबोध सम्मान,साहित्यकार सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं।
बहुत बदिया रचना तिब्बत के उपर /बहुत बधाई /
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है /
www.prernaargal.blogspot.com
तिब्बत के रुदन स्वर कहाँ इतने हल्के होंगे?
ReplyDeletetibbat ka rudan ......
ReplyDeletekya vaastav me yesa hi hai????
माफ कीजिएगा मुझे तो समझ ही नहीं आया की आपने क्या कहना चाहा है इस रचना के माध्यम से लेकिन फिर भी समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/12/blog-post_12.html
http://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_11.html