Sunday, August 14, 2011

लाल क़िले पर अमर तिरंगा

भारत की आँखों का तारा
गंगोजमन का राज-दुलारा
कोटि कोटि कंठों का नारा
गूँजे दूर वितान से
लाल क़िले पर अमर तिरंगा
यों लहराए शान से

जो प्रबुद्ध हैं जो सत्वर हैं
आगे बढ़ने को तत्पर हैं
जो विकास के निश्चित स्वर हैं
फैलें नए विहान से
लाल क़िले पर अमर तिरंगा
यों लहराए शान से

हाथ मिले पनपे विश्वास
दूर दृष्टि नियमित अभ्यास
प्रगति लक्ष्य का सतत प्रयास
ठहरें नहीं विराम से
लाल क़िले पर अमर तिरंगा
यों लहराए शान से

पर्वत नदियाँ पार करें हम
बनकर पारावार चलें हम
बादल बिजली आँधी पानी
डर कैसा तूफ़ान से
लाल क़िले पर अमर तिरंगा
यों लहराए शान से

—पूर्णिमा वर्मन

9 comments:

दिगम्बर नासवा said...

पूर्णिमा जी की इस लाजवाब रचना के लिए आपका धन्यवाद ... बहुत अच्छी लगी ये प्रस्तुति ..

Shikha Kaushik said...

पूर्णिमा जी की yah कविता बहुत अच्छी लगी .आभार ऐसी सुन्दर व् deshbhakti se bhari rachna प्रस्तुत करने हेतु .

Shalini kaushik said...

स्वतंत्रता दिवस और ये प्रस्तुति आभार विवेक जी और पूर्णिमा जी

प्रवीण पाण्डेय said...

तिरंगा लहराए शान से

Chaitanyaa Sharma said...

सबसे प्यारा है हमारा तिरंगा.....स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें ..जय हिंद

Saru Singhal said...

Very beautiful...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
स्वतन्त्रता की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

संगीता पुरी said...

अच्‍छी रचना .. आपके इस सुंदर सी प्रस्‍तुति से हमारी वार्ता भी समृद्ध हुई है !!

Anonymous said...

happy Independence day
JAI HIND....