भारत की आँखों का तारा
गंगोजमन का राज-दुलारा
कोटि कोटि कंठों का नारा
गूँजे दूर वितान से
लाल क़िले पर अमर तिरंगा
यों लहराए शान से
जो प्रबुद्ध हैं जो सत्वर हैं
आगे बढ़ने को तत्पर हैं
जो विकास के निश्चित स्वर हैं
फैलें नए विहान से
लाल क़िले पर अमर तिरंगा
यों लहराए शान से
हाथ मिले पनपे विश्वास
दूर दृष्टि नियमित अभ्यास
प्रगति लक्ष्य का सतत प्रयास
ठहरें नहीं विराम से
लाल क़िले पर अमर तिरंगा
यों लहराए शान से
पर्वत नदियाँ पार करें हम
बनकर पारावार चलें हम
बादल बिजली आँधी पानी
डर कैसा तूफ़ान से
लाल क़िले पर अमर तिरंगा
यों लहराए शान से
—पूर्णिमा वर्मन
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9 comments:
पूर्णिमा जी की इस लाजवाब रचना के लिए आपका धन्यवाद ... बहुत अच्छी लगी ये प्रस्तुति ..
पूर्णिमा जी की yah कविता बहुत अच्छी लगी .आभार ऐसी सुन्दर व् deshbhakti se bhari rachna प्रस्तुत करने हेतु .
स्वतंत्रता दिवस और ये प्रस्तुति आभार विवेक जी और पूर्णिमा जी
तिरंगा लहराए शान से
सबसे प्यारा है हमारा तिरंगा.....स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें ..जय हिंद
Very beautiful...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
स्वतन्त्रता की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
अच्छी रचना .. आपके इस सुंदर सी प्रस्तुति से हमारी वार्ता भी समृद्ध हुई है !!
happy Independence day
JAI HIND....
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