Friday, June 4, 2010
मौन निमंत्रण
स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार
चकित रहता शिशु-सा नादान
विश्व की पलकों पर सुकुमार
विचरते हैं जब स्वप्न अजान,
न जाने, नक्षत्रों से कौन
निमंत्रण मुझे भेजता मौन!
सघन मेघों का भीमाकाश
गरजता है जब तमसाकार
दीर्घ भरता समीर निःश्वास
प्रखर झरती जब पावस चार
न जाने, तपक तड़ित में कौन
मुझे इंगित करता तब मौन!
देख वसुधा का यौवन भार
गूंज उठता है जब मधुमास
विधुर उर के-से मृदु उद्ख्रार
कुसुम जब खुल पड़ते सोच्छ्वास
न जाने, सौरभ के मिस कौन
संदेशा मुझे भेजता मौन!
क्षब्ध जल शिखरों में जब बात
सिंधु में मथकर फेनाकार
बुलबुलों का व्याकुल संसार
बना बिथुरा देती अज्ञात
उठा तब लहरों से कर कौन
न जाने, मुझे बुलाता मौन!
स्वर्ण, सुख, श्री, सौरभ में भोर
विश्व को देती है जब बोर
विहग-कुल की कल कंठ हिलोर
मिला देती भू-नभ के छोर
न जाने, अलस पलक दल कौन
खोल देता तब मेरे मौन!
तुमुल तम में जब एकाकार
ऊंघता एक साथ संसार
भीरु झींगुर कुल की झनकार
कंपा देती तंद्रा के तार
न जाने, खद्योतों से कौन
मुझे पथ दिखलाता तब मौन!
कनक छाया में, जब कि सकाल
खोलती कलिका उर के द्वार
सुरभि पीड़ित मधुपों के बाल
तड़प, बन जाते हैं गुंजार
न जाने, ढुलक ओस में कौन
खींच लेता तब मेरे मौन!
बिछा कार्यों का गुरुतर भार
दिवस को दे सुवर्ण अवसान
शून्य शय्या में, श्रमित अपार
जुड़ाती जब मैं आकुल प्राण
न जाने मुझे स्वप्न में कौन
फिराता छाया जग में मौन!
न जाने कौन, अये द्युतिमान!
जान मुझको अबोध, अज्ञान
सुझाते हो तुम पथ अनजान
फूंक देते छिद्रों में गान
अहे सुख-दुख के सहचर मौन!
नहीं कह सकती तुम हो कौन!!
-सुमित्रानंदन पंत
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3 comments:
सघन मेघों का भीमाकाश
गरजता है जब तमसाकार
दीर्घ भरता समीर निःश्वास
प्रखर झरती जब पावस चार
न जाने, तपक तड़ित में कौन
मुझे इंगित करता तब मौन
pant ji ke liye kya kahan jaaye ,har shabd fike hai mere ,wo to mahaan kavi rahe .man khush ho gaya yahan aakar .
सादर!
हिंदी शब्द , कविता और पन्त , इनका नहीं है कोई अंत |
रत्नेश
बहुत बहुत धन्यवाद आपकी टिपण्णी की लिए
vivek Jain
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