Saturday, June 18, 2011

वीरों का कैसा हो बसंत

आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गजरता बार-बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार
सब पूछ रहे हैं दिग-दिगंत-
वीरों का कैसा हो बसंत

फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग-अंग
है वीर देश में किंतुं कंत-
वीरों का कैसा हो वसंत

भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान
मिलने को आए हैं आदि अंत-
वीरों का कैसा हो वसंत

गलबाँहें हों या हो कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण
अब यही समस्या है दुरंत-
वीरों का कैसा हो वसंत

कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग-जाग
बतला अपने अनुभव अनंत-
वीरों का कैसा हो वसंत

हल्दीघाटी के शिला खंड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत-
वीरों का कैसा हो बसंत

भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छंद नहीं
है कलम बँधी स्वच्छंद नहीं
फिर हमें बताए कौन? हंत-
वीरों का कैसा हो बसंत
-सुभद्रा कुमारी चौहान

22 comments:

Vaanbhatt said...

कालजयी रचनायें पढवाने के लिए धन्यवाद...

sonal said...

ye kavitaa abhi bhi rom rom mein jhankaar jaga deti hai

virendra sharma said...

विवेक जी बरबस ही आप हमें इन चिर कुमार और कुमारियों को सुनवा कर बचपन में ले चलें हैं -
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी ,वह स्वयं वीरता की अवतार ,
देख मराठे पुलकित होते ,उसकी तलवारों के वार ,
महाराष्ट्र कुल देवी भी उसकीआराध्य भवानी थी ,
बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी .
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी ।
कृपया रचना वीरों का कैसा हो वसंत में "गज़रना "शब्द ठीक करलें (गरजना ).शुक्रिया रचना पढवाने के लिए .

Alpana Verma said...

Shubhdra kumaari ji ki yeh kaaljayee rachna hai.punrsmaran karaya aap ne .abhaar.

M VERMA said...

सुभद्रा जी की यह रचना सर्वदा प्रभावित करती रही है

संतोष त्रिवेदी said...

बचपन की पढि हुई रचना याद दिला दी.सर्वकालीन उत्तम !

निर्मला कपिला said...

कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग-जाग
बतला अपने अनुभव अनंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
बहुत दिनो बाद सुभद्रा कुमारी जी को पढा है। सुन्दर सार्थक प्रस्तुति। धन्यवाद।

रविकर said...

ढूंढ़ ढूंढ़ कर पढ़ाते रहिये |
मजेदार
बारम्बार
पढ़ कर आनंद आगया
आभार

मदन शर्मा said...

कालजयी रचनायें पढवाने के लिए धन्यवाद..

महेन्‍द्र वर्मा said...

इस उत्तम रचना को प्रस्तुत करने के लिए आभार।

शूरवीर रावत said...

देश भक्ति की भावना से ओतप्रेत बचपन में पढी थी यह रचना तो फिर याद ताजा हो गयी. वैसे सुभद्रा कुमार चौहान अपनी अत्यधिक लोकप्रिय रचना थी " ........खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी ....." इस सार्थक व रचनात्मक पोस्ट के लिए आपका आभार विवेक जी.

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर लगता है यह गीत।

दिगम्बर नासवा said...

ओजस्वी रचना ... इन वीर रस की कविताओं ने बचपन याद करा दिया ...

Bharat Bhushan said...

याद हो आया यह गीत. आभार आपका.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी पोस्ट रचना अच्छी लगी।
--
पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

रश्मि प्रभा... said...

subhadra ji ki yah rachna mujhe behad pasand hai...

रचना दीक्षित said...

बहुत ही सुन्दर गीत वीर रस से सरावोर. पढवाने के लिए धन्यबाद.

daanish said...

ऐसी अमूल्य धरोहर को सहेज कर रखने
और हम सब तक पहुंचाने के लिए
आभार स्वीकारें .

Urmi said...

सुभद्रा जी की रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा! आभार!

aarkay said...

भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छंद नहीं
है कलम बँधी स्वच्छंद नहीं
फिर हमें बताए कौन? हंत-
वीरों का कैसा हो बसंत

सुभद्रा कुमारी चौहान की एक अन्य काल जयी रचना !
आभार !

Dr Varsha Singh said...

सुभद्रा कुमारी चौहान जी को मेरा नमन....
इस उत्तम रचना की बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

Anonymous said...

In mahaan kavio ki rachnaye padh ke mann parsann ho gaya..bahut bahut saadhuwaad..in rachnao ko blog pe daalne ke liye...regards era