गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
जब मन में लाखों बार गया-
आया सुख सपनों का मेला,
जब मैंने घोर प्रतीक्षा के
युग का पल-पल जल-जल झेला,
मिलने के उन दो यामों ने
दिखलाई अपनी परछाईं,
वह दिन ही था बस दिन मुझको
वह बेला थी मुझको बेला;
उड़ती छाया सी वे घड़ियाँ
बीतीं कब की लेकिन तब से,
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
तुमने जिन सुमनों से उस दिन
केशों का रूप सजाया था,
उनका सौरभ तुमसे पहले
मुझसे मिलने को आया था,
बह गंध गई गठबंध करा
तुमसे, उन चंचल घड़ियों से,
उस सुख से जो उस दिन मेरे
प्राणों के बीच समाया था;
वह गंध उठा जब करती है
दिल बैठ न जाने जाता क्यों;
गरमी में प्रात:काल पवन,
प्रिय, ठंडी आहें भरता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
चितवन जिस ओर गई उसने
मृदों फूलों की वर्षा कर दी,
मादक मुसकानों ने मेरी
गोदी पंखुरियों से भर दी
हाथों में हाथ लिए, आए
अंजली में पुष्पों से गुच्छे,
जब तुमने मेरी अधरों पर
अधरों की कोमलता धर दी,
कुसुमायुध का शर ही मानो
मेरे अंतर में पैठ गया!
गरमी में प्रात:काल पवन
कलियों को चूम सिहरता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
-हरिवंशराय बच्चन
Monday, June 20, 2011
गरमी में प्रात:काल
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हरिवंशराय बच्चन,
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21 comments:
गरमी में प्रात:काल पवन,
प्रिय, ठंडी आहें भरता जब
तब याद तुम्हारी आती है। ...aabhaar
ये पवन और बेला
क्या है झमेला ?
या कोई नया खेला --
ओह सारी--
व्यर्थ ही फेंका ढेला ||
अरे !
ये तो बिग बी के बाबू जी की रचना है ||
व्यर्थ की टीका-टिप्पणी से बचना है ||
चुपचाप गंभीरता से लेना है पढ़ --
छुपा सन्देश खोजना है, समझना है ||
पवन बेला सपना
प्रतीक्षा छाया ||
सुमन रूप सौरभ
चंचल प्रिय वर्षा ||
मुसकान अंजली
पुष्पा कोमल
करे हमारा जीवन
उज्जवल ||
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
बच्चन जी की ये सुन्दर कविता है...आभार
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
यू तो गर्मी से परेशान हम ,पर खुशबू तुम्हारे गजरे की जब हमरे सांसे महका जाती है ...मानो जिंदगी की हर ख़ुशी मिल जाती है ......आभार ..
साहित्य की अनमोल धरोहर प्रस्तुत
करने के लिए आभार स्वीकारें .
जब मन में लाखों बार गया-
आया सुख सपनों का मेला,
जब मैंने घोर प्रतीक्षा के
युग का पल-पल जल-जल झेला,
Nice one. Thanx Vivek ji.
चितवन जिस ओर गई उसने
मृदों फूलों की वर्षा कर दी,
मादक मुसकानों ने मेरी
गोदी पंखुरियों से भर दी
हाथों में हाथ लिए, आए
अंजली में पुष्पों से गुच्छे,
जब तुमने मेरी अधरों पर
अधरों की कोमलता धर दी,
कुसुमायुध का शर ही मानो
मेरे अंतर में पैठ गया!
गरमी में प्रात:काल पवन
कलियों को चूम सिहरता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
bahut sunder shabdon main likhi behatrin rachanaa badhaai,
बच्चन जी की रचनायें उन्हीं की तरह सहज हुआ करती हैं...
bachchan ji kee ye kavita yahan prastut karne ke liye aabhar.
रिमझिम शब्दों का गीत पढ़वाने का आभार।
बीहड़ पथ पर चलते जाना
बस इतनी ही मंजिल है
मंजिल यदि चाहूं पाना
वह उतनी ही मुश्किल है
--
आपने बच्चन जी की सुन्दर रचना प्रस्तुत की है!
मेरे पसंदीदा कवि की यह रचना यहाँ पढवाने का शुक्रिया.
thanks for sharing.
गर्मी में प्रातः काल पवन ,बेला से खेला करता जब ,
तब याद तुम्हारी आती है -
यही सोच रहा था इतनी मादकता इतना नशा किस कवि में हो सकता है ,कवितांश पर पहुंचा जब तब जाना -
इस पार प्रिय मधु है तुम हो उस पार न जाने क्या होगा ,
तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो ,
उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा .
शुक्रिया विवेक जी ऐसी ही मिठास समेट ते रहो रसपान करवाते रहो .
सुहाने मौसम मे शब्दों की यह रिमझिम फुहार खुशी दूना कर देती है।
चितवन जिस ओर गई उसने
मृदों फूलों की वर्षा कर दी,
वाह इतनी सरस कविता देने के लिए शुक्रिया विवेक जी.
मेरे प्रिय कवि बच्चन जी की एक और सुंदर रचना से परिचय करवाने के लिए आभार !
बच्चन जी की ये कविता बहुत अच्छी लगी! आभार!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
अनश्वर अमर हैं भावनाप्रद यादें..
कविता की प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार
आनंद आ गया पढ़कर....
बच्चन जी की अपठित रचना से मुलाक़ात कराने के लिए बेहद आभार....
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