क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
अगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी घड़ियों को
किन-किन से आबाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से
अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
दोनों करके पछताता हूँ,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूँ,
सुधियों के बंधन से कैसे
अपने को आज़ाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
-हरिवंशराय बच्चन
Sunday, June 26, 2011
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13 comments:
याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से
अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
bahut sunder bhav liye sunder prastuti.badhaai.
अगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
क के माहौल मे पंक्तिया फ़िट बैठती हैं
अहा।
याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से
अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!......सच कहा आपने सुखों की याद ही पलकों में अनसु दे जाती है , हम बस सोचते ही सोचते जीवन बिता देते ही संग बस हमरे अन्सुओअन की फुहारे जाती है .......
आभार!
आभार!
रजनी की सूनी घड़ियों को
किन-किन से आबाद करूँ मैं!
याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से
अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
bahut sundar bhavatmak prastuti.
कुछ खोया-पाया जैसी स्थिति है...हर जीवन में...
बच्चन जी की ही एक रचना है...
नभ में दूर-दूर तारे भी
विश्व समझता स्नेह-सगाई
पर एकाकीपन का अनुभव
करते हैं वो बेचारे भी...
नभ में दूर-दूर तारे भी
दोनों करके पछताता हूँ,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूँ,
सुधियों के बंधन से कैसे
अपने को आज़ाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
bahut acha
"samrat bundelkhand"
सुन्दर रचना...
bahut umda rachna ,badhai
दोनों करके पछताता हूँ,..
सोच नहीं, पर मैं पाता हूँ,
सुधियों के बंधन से कैसे
अपने को आज़ाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं..
अच्छी रचना
wow....this is one of my favourite poem.....it was nice to read it again....:)
regards
Naveen solanki
http://drnaveenkumarsolanki.blogspot.com/
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