Wednesday, October 5, 2011
विजयदशमी की शुभकामनाएँ
छाया था आतंक हर तरफ़ रावण का साया था
जिसकी काली करतूतों ने सबको भरमाया था
अपने मद में चूर भंग अनुशासन करता था
उड़ता था आकाश दूसरों पर शासन करता था
मनमानी में भूल गया अन्याय न्याय की रेखा
सीता को हर ले जाने का परिणाम ना देखा
सोचा नहीं राम से भिड़ना जीवन घातक होगा
अहंकार जिस बल पर उसका खुद ही नाशक होगा
घटा महासंग्राम युद्ध में रावण का संहार हुआ
हुई अधर्म की हार धर्म का स्थापित संसार हुआ
सच है जग में अंत बुराई का एक दिन होना है
सच्चाई पर चलने वाला राम विजित होना है
हर विजयादशमी के दिन एक रावण जल जाता है
हर दशहरे पर राम विजय का हर्ष उभर आता है
यही कामना रावण का हो अंत राम की विजय
करें सभी जयघोष - सियावर रामचंद्र की जय!
-पूर्णिमा वर्मन
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7 comments:
सुंदर रचना ...शुभकामनायें
बोलो, सियावर रामचंद्र की जय।
हुई अधर्म की हार धर्म का स्थापित संसार हुआ
खूबसूरत |
सादर नमन ||
http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post.html
बहुत सुन्दर..विजय दशमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
सुन्दर और बेहतरीन रचना
विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं...
पूर्णिमा जी का लिखा हमेशा दिल में उतर् जाता है .. दशहरे के दिन सार्थक और सामयिक चिंतन है इस रचना में ...
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