Friday, October 21, 2011

मेरी ज़िद



तेरी कोशिश, चुप हो जाना,
मेरी ज़िद है, शंख बजाना ...

ये जो सोये, उनकी नीदें
सीमा से भी ज्यादा गहरी
अब तक जाग नहीं पाये वे
सर तक है आ गई दुपहरी;
कब से उन्हें, पुकार रहा हूँ
तुम भी कुछ, आवाज़ मिलाना...

तट की घेराबंदी करके
बैठे हैं सारे के सारे,
कोई मछली छूट न जाये
इसी दाँव में हैं मछुआरे.....
मैं उनको ललकार रहा हूँ,
तुम जल्दी से जाल हटाना.....

ये जो गलत दिशा अनुगामी
दौड़ रहे हैं, अंधी दौड़ें,
अच्छा हो कि हिम्मत करके
हम इनकी हठधर्मी तोड़ें.....
मैं आगे से रोक रहा हूँ -
तुम पीछे से हाँक लगाना ....



- कृष्ण वक्षी

12 comments:

सदा said...

बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

vibhinn kaviyon kee kavitaaon ko saarvajanik karne ka sundar maadhyam. dhanyawaad.

प्रवीण पाण्डेय said...

चारों ओर से घेरना होगा।

vandana gupta said...

तेरी कोशिश, चुप हो जाना,
मेरी ज़िद है, शंख बजाना ..

बहुत सुन्दर ख्याल्।

रेखा said...

सुन्दर प्रस्तुति ....

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति |
त्योहारों की यह श्रृंखला मुबारक ||

बहुत बहुत बधाई ||

amrendra "amar" said...

बहुत सुन्दर लिखा है आपने बधाई

दिगम्बर नासवा said...

लाजवाब रचना प्रस्तुति के लिए शुक्रिया ...

***Punam*** said...

सुन्दर प्रस्तुति के लिए शुक्रिया ...

अनुपमा पाठक said...

ये जो गलत दिशा अनुगामी
दौड़ रहे हैं, अंधी दौड़ें,
अच्छा हो कि हिम्मत करके
हम इनकी हठधर्मी तोड़ें.....
मैं आगे से रोक रहा हूँ -
तुम पीछे से हाँक लगाना ....
सुन्दर रचना प्रस्तुति!

Anamikaghatak said...

behatarin shabdon se sajaya hai aapne is kavita ko...umda prastuti

महेन्‍द्र वर्मा said...

तट की घेराबंदी करके
बैठे हैं सारे के सारे,
कोई मछली छूट न जाये
इसी दाँव में हैं मछुआरे.....
मैं उनको ललकार रहा हूँ,
तुम जल्दी से जाल हटाना.....

प्रभावशाली गीत।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।