Friday, November 18, 2011

परिचय की वो गाँठ

यों ही कुछ
मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गाँठ लगा दी!

था पथ पर मैं
भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन
लहर थी उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!

कभी-कभी
यों हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूँज किसी
उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!

जड़ता है
जीवन की पीड़ा
निष् तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने
अनजाने वह पीड़ा
छवि के शर से दूर भगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!
-त्रिलोचन

10 comments:

रश्मि प्रभा... said...

कभी-कभी
यों हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूँज किसी
उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!
waah...

रविकर said...

बहुत सुन्दर ||

दो सप्ताह के प्रवास के बाद
संयत हो पाया हूँ ||

बधाई ||

सदा said...

वाह ...बहुत खूब लिखा है ।

Unknown said...

बहुत सुन्दर

रेखा said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ...

Pallavi saxena said...

वाह बहुत खूब लिखा है आपने बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आभार ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

प्रवीण पाण्डेय said...

सम्बन्ध को शब्दों में बाँध पाना कठिन है।

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही सुन्दर रचना है त्रिलोचन जी की ...

kshama said...

कभी-कभी
यों हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूँज किसी
उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!
Behad sundar panktiyan!

***Punam*** said...

जड़ता है
जीवन की पीड़ा
निष् तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने
अनजाने वह पीड़ा
छवि के शर से दूर भगा दी।
परिचय की
वो गाँठ लगा दी!

जीवन में यदि ऐसा परिचय हो तो क्या कहना...!!