समय पाखी उड़ गया तो
भाग्यलेखा मिट गया तो
पोर पर अनमोल यह पल क्या पता फिर साथ ना हो
जानेमन नाराज़ ना हो
ज़िंदगी एक नीड़ सी है
हर तरफ एक भीड़ सी है
कल ये तिनके उड़ गए तो फिर न जाने हम कहाँ हों
जानेमन नाराज़ ना हो।
-पूर्णिमा वर्मन
Sunday, June 5, 2011
जानेमन नाराज़ ना हो
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32 comments:
"जानेमन नाराज़ ना हो" beautifully written.
वाह क्या बात है.
ज़िंदगी एक नीड़ सी है
हर तरफ एक भीड़ सी है
कल ये तिनके उड़ गए तो फिर न जाने हम कहाँ हों
बहुत बढ़िया। पूर्णिमा जी और आपको शुभकामनाएं।
वाह, शब्दों का क्या प्रयोग है .. मज़ा आ गया पढके ...
सुन्दर!
पूर्णिमा वर्मन जी की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
आपको और पूर्णिमा वर्मन जी को हार्दिक शुभकामनायें !
ज़िंदगी एक नीड़ सी है
हर तरफ एक भीड़ सी है
loved these lines !!
भावपूर्ण रचना.छोटी-छोटी पंक्तियों में गहरे -गहरे भाव.वाह ! क्या बात है.
आज को जी भर जीयें हम
प्रेम का प्याला पीयें हम
कल कभी भी आ न पाये,काश ऐसा भी जहां हो.......
ज़िंदगी एक नीड़ सी है
हर तरफ एक भीड़ सी है
कल ये तिनके उड़ गए तो फिर न जाने हम कहाँ हों...waah
बेहद प्रभावशाली रचना बधाई
बहुत सुन्दर
आभार
तृप्ती
'पोर पर अनमोल यह पल क्या पता फिर साथ ना हो'
बहुत सुंदर भाव संजोए कविता.
जानेमन नाराज़ ना हो ...
Kya bat hai .. mazaa aa gaya is rachna ko padh kar ...
प्रेम पूर्ण भावों की सुन्दर रचना ...
वर्तमान की सुन्दर घड़ियों को पूरी शिद्दत के साथ जी लें , कल किसने देखा है ?
आभार पूर्णिमा जी की रचना पढ़वाने का.
बहुत ही सुन्दर।
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
purnima jee ki rachna ka jbab nahi:)
वाह ... बहुत खूब ।
अच्छा संग्रह है...
--अच्छी कविता पूर्णिमा जी की....
'जाने कल आये ना आये..
ज़िंदगी एक नीड़ सी है
हर तरफ एक भीड़ सी है...
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! उम्दा रचना !
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Very nice....
abhar poornima ji ki sunder kavita padhvane ke liye.
बेहतरीन रचना ....पढवाने का धन्यवाद
गागर में सागर सी है पूर्णिमा जी की यह रचना।
---------
बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।
पूर्णिमा जी की सुन्दर रचना पढ़ कर मन खुश हो गया....
Beautiful !
गहरी दृष्टी ! प्यार से सजा कर तिनके को रखना भी जरुरी है !
waah bahut sundar
बहुत बहुत आभार हौसला बढ़ाने का,
विवेक जैन
Sundar rachana...
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