Sunday, June 5, 2011

जानेमन नाराज़ ना हो

समय पाखी उड़ गया तो
भाग्यलेखा मिट गया तो
पोर पर अनमोल यह पल क्या पता फिर साथ ना हो
जानेमन नाराज़ ना हो

ज़िंदगी एक नीड़ सी है
हर तरफ एक भीड़ सी है
कल ये तिनके उड़ गए तो फिर न जाने हम कहाँ हों
जानेमन नाराज़ ना हो।

-पूर्णिमा वर्मन

33 comments:

Kunwar Kusumesh said...

"जानेमन नाराज़ ना हो" beautifully written.

रेखा said...

वाह क्या बात है.

महेन्‍द्र वर्मा said...

ज़िंदगी एक नीड़ सी है
हर तरफ एक भीड़ सी है
कल ये तिनके उड़ गए तो फिर न जाने हम कहाँ हों

बहुत बढ़िया। पूर्णिमा जी और आपको शुभकामनाएं।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

वाह, शब्दों का क्या प्रयोग है .. मज़ा आ गया पढके ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर!

Dr Varsha Singh said...

पूर्णिमा वर्मन जी की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

आपको और पूर्णिमा वर्मन जी को हार्दिक शुभकामनायें !

Jyoti Mishra said...

ज़िंदगी एक नीड़ सी है
हर तरफ एक भीड़ सी है

loved these lines !!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

भावपूर्ण रचना.छोटी-छोटी पंक्तियों में गहरे -गहरे भाव.वाह ! क्या बात है.
आज को जी भर जीयें हम
प्रेम का प्याला पीयें हम
कल कभी भी आ न पाये,काश ऐसा भी जहां हो.......

रश्मि प्रभा... said...

ज़िंदगी एक नीड़ सी है
हर तरफ एक भीड़ सी है
कल ये तिनके उड़ गए तो फिर न जाने हम कहाँ हों...waah

Unknown said...

बेहद प्रभावशाली रचना बधाई

Chinmayee said...

बहुत सुन्दर
आभार
तृप्ती

Bharat Bhushan said...

'पोर पर अनमोल यह पल क्या पता फिर साथ ना हो'

बहुत सुंदर भाव संजोए कविता.

Unknown said...

ज़िंदगी एक नीड़ सी है
हर तरफ एक भीड़ सी है
कल ये तिनके उड़ गए तो फिर न जाने हम कहाँ हों
बहुत खूबसूरत !
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - स्त्री अज्ञानी ?

दिगम्बर नासवा said...

जानेमन नाराज़ ना हो ...

Kya bat hai .. mazaa aa gaya is rachna ko padh kar ...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

प्रेम पूर्ण भावों की सुन्दर रचना ...

वर्तमान की सुन्दर घड़ियों को पूरी शिद्दत के साथ जी लें , कल किसने देखा है ?

Udan Tashtari said...

आभार पूर्णिमा जी की रचना पढ़वाने का.

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

मुकेश कुमार सिन्हा said...

purnima jee ki rachna ka jbab nahi:)

सदा said...

वाह ... बहुत खूब ।

shyam gupta said...

अच्छा संग्रह है...
--अच्छी कविता पूर्णिमा जी की....
'जाने कल आये ना आये..

Urmi said...

ज़िंदगी एक नीड़ सी है
हर तरफ एक भीड़ सी है...
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! उम्दा रचना !

upendra shukla said...

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Ravi Rajbhar said...

Very nice....

Anupama Tripathi said...

abhar poornima ji ki sunder kavita padhvane ke liye.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बेहतरीन रचना ....पढवाने का धन्यवाद

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

गागर में सागर सी है पूर्णिमा जी की यह रचना।

---------
बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

पूर्णिमा जी की सुन्दर रचना पढ़ कर मन खुश हो गया....

ZEAL said...

Beautiful !

G.N.SHAW said...

गहरी दृष्टी ! प्यार से सजा कर तिनके को रखना भी जरुरी है !

सु-मन (Suman Kapoor) said...

waah bahut sundar

Vivek Jain said...

बहुत बहुत आभार हौसला बढ़ाने का,
विवेक जैन

Amrita Tanmay said...

Sundar rachana...