Sunday, June 12, 2011

बेसन की सोंधी रोटी

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुँकनी जैसी माँ

बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ

चिड़ियों की चहकार में गूँजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ

बीवी बेटी बहन पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिनभर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा माथा
आँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ
- निदा फ़ाज़ली

32 comments:

Shalini kaushik said...

nida fazli ji kee ye nazm man ko gahre taq chhoo leti hai .vivek ji aapne ye yahan prastut kar bahut sarahniy karya kiya hai.

रश्मि प्रभा... said...

nida faazli ko maine padha tha... is rachna ki sondhi khushboo me maza aa gaya

Udan Tashtari said...

आभार निदा फ़ाज़ली साहब की रचना प्रस्तुत करने का.

virendra sharma said...

निदा फाजली साहब की "माँ "को मूर्त करती इस रचना को परोसने के लिए विवेक भाई जैन का आभार .तू जिए हज़ारों साल .

Shikha Kaushik said...

maa ki mahima ko vishleshit karti Nida ji ki gazal prastut kar aapne sabhi pathhkon ka man moh liya hai .aabhar .

Bharat Bhushan said...

निदा फ़ाज़ली की नज़्म देने के लिए आपका आभार. माँ की छवि को क्या उकेरा है निदा ने, मान गए.

प्रवीण पाण्डेय said...

सब उपाधियाँ माँ के सम्मुख एक हो जाती हैं।

Amrita Tanmay said...

Khubsurat rachana se aanandit karvaane ke liye dhanyvaad...

Amrita Tanmay said...

Khubsurat rachana se aanandit karvaane ke liye dhanyvaad...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

निदा फाज़ली की खूबसूरज नज़्म पढ़वाने के लिए शुक्रिया!

Arunesh c dave said...

आपकी बदौलत फ़िर एक बार निदा फ़ाजली याद आ गये

Urmi said...

निदा फाज़ली जी की ये नज़्म दिल को छू गयी! बहुत सुन्दर लगा! आभार!

Anonymous said...

nida fazali ki ye shandar poem k liye shuriya hain
shandar blog yaar...
will follow it....

Jyoti Mishra said...

showing the selfless love and devotion of a mother.
Awesome read !!!

दिगम्बर नासवा said...

निदा जी की या ग़ज़ल जितनी बार पढ़ों उतना ही ज़्यादा मज़ा देती है ... शुक्रिया इस लाजवाब कृति के लिए ....

संध्या शर्मा said...

निदा फाज़ली जी की खूबसूरज नज़्म के लिए शुक्रिया......

sonal said...

sondhi si rachnaa ....dhanyawaad

रविकर said...

बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे

मनोज अबोध said...

मेरे ब्‍लाग पर आपके आगमन का धन्‍यवाद ।
आपको नाचीज का कहा कुछ अच्‍छा लगा, उसके लिए हार्दिक आभार

आपका ब्‍लाग भी अच्‍छा लगा । बधाई

Maheshwari kaneri said...

आभार निदा फ़ाज़ली साहब की रचना प्रस्तुत करने

Unknown said...

निदा फाजली की उपमाये बेहद संवेदनशील होती है

Sadhana Vaid said...

निदा फाज़ली साहेब की बेमिसाल रचना ! हर प्रतिमान अनोखा है और हर पंक्ति की सम्प्रेषणीयता बहुत ही गहन एवं असरकारी है ! इतनी अद्भुत रचना को पढ़वाने के लिये आपका शुक्रिया !

शूरवीर रावत said...

निदा फ़ाज़ली की यह नज़्म बहुत ही उम्दा है विवेक जी. आपका जायका मानना पड़ेगा. निदा फ़ाज़ली साहेब को ज्यादा नहीं पढ़ा है, लेकिन उनकी एक नज़्म है - तुम्हारे ख़त. बहुत सादगी लिए मुखड़ा है; " वो जो तुमने लिखे थे कभी कभी मुझको, मै आज सोच रहा हूँ, उन्हें जला डालूँ ! ........." इस सुन्दर पोस्ट के लिए आभार.

Anonymous said...

मेरे ब्लॉग मुंशी प्रेमचंद पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया......आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ......पहली ही पोस्ट दिल को छू गयी.....बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट .....शानदार...प्रशंसनीय |

कभी फुर्सत लगे तो मेरे अन्य ब्लॉग भी देखिये आपको एक ब्लॉग में अन्य के लिंक मिल जायेंगे |

रेखा said...

ऐसी भावनात्मक और सोंधी रचना पढ़ने का अवसर देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

Dr (Miss) Sharad Singh said...

माँ पर निदा फ़ाज़ली जी की बेहतरीन रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार.

rashmi ravija said...

बाँट के अपना चेहरा माथा
आँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

ये कविता तो मुझे पूरी की पूरी याद है...
फिर से पढना बहुत बहुत अच्छा लगा...शुक्रिया

Pratik Maheshwari said...

निदा फाजली की बेहतरीन पंक्तियों को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.. बहुत अच्छा लगा...

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

विवेक जी धन्यवाद सुन्दर संकलन आप का निदा फाजली साहेब की ये नज्म माँ के सभी रूप का वर्णन करती जगा जाती है हम सब को
शुक्ल भ्रमर५

Dr Varsha Singh said...

बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ

चिड़ियों की चहकार में गूँजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ

बहुत खूब..हमेशा की तरह...गहन अनुभूतियों और जीवन दर्शन से परिपूर्ण शब्दों में गहरी बात.
हार्दिक शुभकामनायें।

aarkay said...

khoobsurat nazm .
maa se badh kar bhin kya kuchh Hai !

Vivek Jain said...

आप सबका बहुत बहुत आभार,
-विवेक जैन