बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुँकनी जैसी माँ
बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ
चिड़ियों की चहकार में गूँजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ
बीवी बेटी बहन पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिनभर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा माथा
आँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ
- निदा फ़ाज़ली
Sunday, June 12, 2011
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32 comments:
nida fazli ji kee ye nazm man ko gahre taq chhoo leti hai .vivek ji aapne ye yahan prastut kar bahut sarahniy karya kiya hai.
nida faazli ko maine padha tha... is rachna ki sondhi khushboo me maza aa gaya
आभार निदा फ़ाज़ली साहब की रचना प्रस्तुत करने का.
निदा फाजली साहब की "माँ "को मूर्त करती इस रचना को परोसने के लिए विवेक भाई जैन का आभार .तू जिए हज़ारों साल .
maa ki mahima ko vishleshit karti Nida ji ki gazal prastut kar aapne sabhi pathhkon ka man moh liya hai .aabhar .
निदा फ़ाज़ली की नज़्म देने के लिए आपका आभार. माँ की छवि को क्या उकेरा है निदा ने, मान गए.
सब उपाधियाँ माँ के सम्मुख एक हो जाती हैं।
Khubsurat rachana se aanandit karvaane ke liye dhanyvaad...
Khubsurat rachana se aanandit karvaane ke liye dhanyvaad...
निदा फाज़ली की खूबसूरज नज़्म पढ़वाने के लिए शुक्रिया!
आपकी बदौलत फ़िर एक बार निदा फ़ाजली याद आ गये
निदा फाज़ली जी की ये नज़्म दिल को छू गयी! बहुत सुन्दर लगा! आभार!
nida fazali ki ye shandar poem k liye shuriya hain
shandar blog yaar...
will follow it....
showing the selfless love and devotion of a mother.
Awesome read !!!
निदा जी की या ग़ज़ल जितनी बार पढ़ों उतना ही ज़्यादा मज़ा देती है ... शुक्रिया इस लाजवाब कृति के लिए ....
निदा फाज़ली जी की खूबसूरज नज़्म के लिए शुक्रिया......
sondhi si rachnaa ....dhanyawaad
बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
मेरे ब्लाग पर आपके आगमन का धन्यवाद ।
आपको नाचीज का कहा कुछ अच्छा लगा, उसके लिए हार्दिक आभार
आपका ब्लाग भी अच्छा लगा । बधाई
आभार निदा फ़ाज़ली साहब की रचना प्रस्तुत करने
निदा फाजली की उपमाये बेहद संवेदनशील होती है
निदा फाज़ली साहेब की बेमिसाल रचना ! हर प्रतिमान अनोखा है और हर पंक्ति की सम्प्रेषणीयता बहुत ही गहन एवं असरकारी है ! इतनी अद्भुत रचना को पढ़वाने के लिये आपका शुक्रिया !
निदा फ़ाज़ली की यह नज़्म बहुत ही उम्दा है विवेक जी. आपका जायका मानना पड़ेगा. निदा फ़ाज़ली साहेब को ज्यादा नहीं पढ़ा है, लेकिन उनकी एक नज़्म है - तुम्हारे ख़त. बहुत सादगी लिए मुखड़ा है; " वो जो तुमने लिखे थे कभी कभी मुझको, मै आज सोच रहा हूँ, उन्हें जला डालूँ ! ........." इस सुन्दर पोस्ट के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग मुंशी प्रेमचंद पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया......आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ......पहली ही पोस्ट दिल को छू गयी.....बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट .....शानदार...प्रशंसनीय |
कभी फुर्सत लगे तो मेरे अन्य ब्लॉग भी देखिये आपको एक ब्लॉग में अन्य के लिंक मिल जायेंगे |
ऐसी भावनात्मक और सोंधी रचना पढ़ने का अवसर देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
माँ पर निदा फ़ाज़ली जी की बेहतरीन रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार.
बाँट के अपना चेहरा माथा
आँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ
ये कविता तो मुझे पूरी की पूरी याद है...
फिर से पढना बहुत बहुत अच्छा लगा...शुक्रिया
निदा फाजली की बेहतरीन पंक्तियों को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.. बहुत अच्छा लगा...
विवेक जी धन्यवाद सुन्दर संकलन आप का निदा फाजली साहेब की ये नज्म माँ के सभी रूप का वर्णन करती जगा जाती है हम सब को
शुक्ल भ्रमर५
बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ
चिड़ियों की चहकार में गूँजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ
बहुत खूब..हमेशा की तरह...गहन अनुभूतियों और जीवन दर्शन से परिपूर्ण शब्दों में गहरी बात.
हार्दिक शुभकामनायें।
khoobsurat nazm .
maa se badh kar bhin kya kuchh Hai !
आप सबका बहुत बहुत आभार,
-विवेक जैन
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