अपनेपन का मतवाला था भीड़ों में भी मैं
खो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
देखा जग ने टोपी बदली
तो मन बदला, महिमा बदली
पर ध्वजा बदलने से न यहाँ
मन-मंदिर की प्रतिमा बदली
मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई
धो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
हड़ताल, जुलूस, सभा, भाषण
चल दिए तमाशे बन-बनके
पलकों की शीतल छाया में
मैं पुनः चला मन का बन के
जो चाहा करता चला सदा प्रस्तावों को मैं
ढो न सका
चाहे जिस दल में मैं जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
दीवारों के प्रस्तावक थे
पर दीवारों से घिरते थे
व्यापारी की ज़ंजीरों से
आज़ाद बने वे फिरते थे
ऐसों से घिरा जनम भर मैं सुखशय्या पर भी
सो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
-गोपाल सिंह नेपाली
Tuesday, June 14, 2011
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25 comments:
मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई
धो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
good collection...!
thanx..!
दीवारों के प्रस्तावक थे
पर दीवारों से घिरते थे
व्यापारी की ज़ंजीरों से
आज़ाद बने वे फिरते थे
ऐसों से घिरा जनम भर मैं सुखशय्या पर भी
सो न सका
परिवेश की श्रृंगारमय कविता.
shandar yaar
यह कविता आज भी प्रासंगिक है।
भाई विवेक जैन जी आप बहुत नेक काम कर रहें हैं .आज आपने गोपाल सिंह नेपाली को भोई सुनवा दिया ."मेरी "दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा "हमारा एक संगी गाता था .वह दौर अन्ताक्षरी (साहित्यिक ) प्रतियोगिता का था .गोपाल सिंह नेपाली का यह गीत आज भी गुनगुना तें हैं ।
मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई धौ न सका ,
चाहे जिस दल में मिल जाऊं ,इतना सस्ता में हो न सका .
ये लोग तो हमारी थाती हैं धरोहर हैं .ज़रा संभाल के भाई .और दोस्त "अब जाने दो सर "वाली कोई बात न थी .देश का संत पिटे और लादेन ,लादेन जी कहलाये तो दुःख तो होता है .कहीं तो फूटेगा छाला उर का .
चाहे जिस दल में मैं जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
this lines just bangs to your heart. It was a nice read.
waah....
गीतों को चुनना और प्रस्तुत करने ढंग दोनों अनोखे |
प्रस्तुत किये गए गीत अत्यंत चोखे ||
nice collection.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत खूब, मतवाले लोग ही इस दुनिया में नाम कमाते हैं।
---------
ये शानदार मौका...
यहाँ खुदा है, वहाँ खुदा है...
'चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता मैं हो न सका'
ये एक पंक्ति इस पूरी पोस्ट की जान है बहुत बहुत पसंद आई.....
एक अच्छी कविता को पढवाने के लिए धन्यवाद
samay samay par shreshth kaviyon ki rachnaon se parichay karane ke liye aabhaar !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर और बेहतरीन रचना|
मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई
धो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका.....बहुत सुन्दर प्रस्तुति
एक उम्दा कविता की प्रस्तुति । इनकी एक और कविता है
""जीवन का परिचय पाता है कोई एक हजारों में ""। वैसे इनकी दो कवितायें ""मेरा धन है स्वाधीन कलम ""और ""नवीन कल्पना करो ""एक पत्रिका में भी प्रकाशित हुई थी । आपको धन्यवाद
बहुत आभार।
badhiya prastuti
बहुत अच्छा गीत एकदम सामयिक
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच{16-6-2011}
अच्छी मंशा ! कमसेकम दलबदलू तो नहीं ! अच्छा संग्रह !
बहुत बहुत आभार आप सभी का,
-विवेक जैन
हड़ताल, जुलूस, सभा, भाषण
चल दिए तमाशे बन-बनके
पलकों की शीतल छाया में
मैं पुनः चला मन का बन के
जो चाहा करता चला सदा प्रस्तावों को मैं
ढो न सका
चाहे जिस दल में मैं जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका.....
आज भी कितनी सटीक और समसामयिक है...उत्कृष्ट रचना पढवाने के लिये आभार..
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