Tuesday, June 14, 2011

अपनेपन का मतवाला

अपनेपन का मतवाला था भीड़ों में भी मैं
खो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका

देखा जग ने टोपी बदली
तो मन बदला, महिमा बदली
पर ध्वजा बदलने से न यहाँ
मन-मंदिर की प्रतिमा बदली

मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई
धो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका

हड़ताल, जुलूस, सभा, भाषण
चल दिए तमाशे बन-बनके
पलकों की शीतल छाया में
मैं पुनः चला मन का बन के

जो चाहा करता चला सदा प्रस्तावों को मैं
ढो न सका
चाहे जिस दल में मैं जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका

दीवारों के प्रस्तावक थे
पर दीवारों से घिरते थे
व्यापारी की ज़ंजीरों से
आज़ाद बने वे फिरते थे

ऐसों से घिरा जनम भर मैं सुखशय्या पर भी
सो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
-गोपाल सिंह नेपाली

25 comments:

***Punam*** said...

मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई
धो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका

good collection...!
thanx..!

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) said...

दीवारों के प्रस्तावक थे
पर दीवारों से घिरते थे
व्यापारी की ज़ंजीरों से
आज़ाद बने वे फिरते थे
ऐसों से घिरा जनम भर मैं सुखशय्या पर भी
सो न सका
परिवेश की श्रृंगारमय कविता.

Anonymous said...

shandar yaar

देवेन्द्र पाण्डेय said...

यह कविता आज भी प्रासंगिक है।

virendra sharma said...

भाई विवेक जैन जी आप बहुत नेक काम कर रहें हैं .आज आपने गोपाल सिंह नेपाली को भोई सुनवा दिया ."मेरी "दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा "हमारा एक संगी गाता था .वह दौर अन्ताक्षरी (साहित्यिक ) प्रतियोगिता का था .गोपाल सिंह नेपाली का यह गीत आज भी गुनगुना तें हैं ।
मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई धौ न सका ,
चाहे जिस दल में मिल जाऊं ,इतना सस्ता में हो न सका .
ये लोग तो हमारी थाती हैं धरोहर हैं .ज़रा संभाल के भाई .और दोस्त "अब जाने दो सर "वाली कोई बात न थी .देश का संत पिटे और लादेन ,लादेन जी कहलाये तो दुःख तो होता है .कहीं तो फूटेगा छाला उर का .

Jyoti Mishra said...

चाहे जिस दल में मैं जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
this lines just bangs to your heart. It was a nice read.

रश्मि प्रभा... said...

waah....

रविकर said...

गीतों को चुनना और प्रस्तुत करने ढंग दोनों अनोखे |
प्रस्तुत किये गए गीत अत्यंत चोखे ||

ZEAL said...

nice collection.

रेखा said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत खूब, मतवाले लोग ही इस दुनिया में नाम कमाते हैं।

---------
ये शानदार मौका...
यहाँ खुदा है, वहाँ खुदा है...

Anonymous said...

'चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता मैं हो न सका'

ये एक पंक्ति इस पूरी पोस्ट की जान है बहुत बहुत पसंद आई.....

News And Insights said...

एक अच्छी कविता को पढवाने के लिए धन्यवाद

aarkay said...

samay samay par shreshth kaviyon ki rachnaon se parichay karane ke liye aabhaar !

Kunwar Kusumesh said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत सुन्दर और बेहतरीन रचना|

Maheshwari kaneri said...

मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई
धो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका.....बहुत सुन्दर प्रस्तुति

BrijmohanShrivastava said...

एक उम्दा कविता की प्रस्तुति । इनकी एक और कविता है
""जीवन का परिचय पाता है कोई एक हजारों में ""। वैसे इनकी दो कवितायें ""मेरा धन है स्वाधीन कलम ""और ""नवीन कल्पना करो ""एक पत्रिका में भी प्रकाशित हुई थी । आपको धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत आभार।

ana said...

badhiya prastuti

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत अच्छा गीत एकदम सामयिक

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच{16-6-2011}

G.N.SHAW said...

अच्छी मंशा ! कमसेकम दलबदलू तो नहीं ! अच्छा संग्रह !

Vivek Jain said...

बहुत बहुत आभार आप सभी का,

-विवेक जैन

Kailash Sharma said...

हड़ताल, जुलूस, सभा, भाषण
चल दिए तमाशे बन-बनके
पलकों की शीतल छाया में
मैं पुनः चला मन का बन के

जो चाहा करता चला सदा प्रस्तावों को मैं
ढो न सका
चाहे जिस दल में मैं जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका.....

आज भी कितनी सटीक और समसामयिक है...उत्कृष्ट रचना पढवाने के लिये आभार..