Friday, June 24, 2011

उत्तर नहीं हूँ

उत्तर नहीं हूँ
मैं प्रश्न हूँ तुम्हारा ही!

नये-नये शब्दों में तुमने
जो पूछा है बार-बार
पर जिस पर सब के सब केवल निरुत्तर हैं
प्रश्न हूँ तुम्हारा ही!

तुमने गढ़ा है मुझे
किन्तु प्रतिमा की तरह स्थापित नहीं किया
या
फूल की तरह
मुझको बहा नहीं दिया
प्रश्न की तरह मुझको रह-रह दोहराया है
नयी-नयी स्थितियों में मुझको तराशा है
सहज बनाया है
गहरा बनाया है
प्रश्न की तरह मुझको
अर्पित कर डाला है
सबके प्रति
दान हूँ तुम्हारा मैं
जिसको तुमने अपनी अंजलि में बाँधा नहीं
दे डाला!
उत्तर नहीं हूँ मैं
प्रश्न हूँ तुम्हारा ही!
-धर्मवीर भारती

14 comments:

निवेदिता श्रीवास्तव said...

भारती जी की एक बहुत अच्छी कविता पढ़वाने के लिये आभार !

Shalini kaushik said...

bahut sarahniy prastuti.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

धर्मवीर भारती जी इस रचना को शेयर करने हेतु बेहद आभार....
विवेक जी आप अच्छा कार्य कर रहे हैं... बधाई...
सादर...

Maheshwari kaneri said...

धर्मवीर भारती जी की एक बहुत अच्छी कविता पढ़वाने के लिये आभार !

रविकर said...

प्रश्न हूँ तुम्हारा ही!

धन्य हुआ भारती जी को पढ़कर ||

प्रवीण पाण्डेय said...

लुका छिपी का जीवन।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

धर्मवीर भारती जी को पढ़वाने के लिए आभार!

Vaanbhatt said...

आपकी खोज सराहनीय है...भारती जी की याद एक इलाहाबादी को दिलाने के लिए...धन्यवाद...

बी.एस.गुर्जर said...

नये-नये शब्दों में तुमने
जो पूछा है बार-बार
पर जिस पर सब के सब केवल निरुत्तर हैं
प्रश्न हूँ तुम्हारा ही! ...bhut sundar .....

शूरवीर रावत said...

धर्मवीर भारती की इस नायाब रचना के लिए आभार.
कभी चन्द्र कुँवर बर्त्वाल की कविताओं को भी मेरे सपने में जगह दें .

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi shaandaar chayan

BrijmohanShrivastava said...

भारती जी रचना पढवाने हेतु धन्यवाद

महेन्‍द्र वर्मा said...

नये-नये शब्दों में तुमने
जो पूछा है बार-बार
पर जिस पर सब के सब केवल निरुत्तर हैं
प्रश्न हूँ तुम्हारा ही!

भारती जी की एक उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार, विवेक जी।

Amrita Tanmay said...

सबको पढ़ना अच्छा लगता है. पढवाने के लिए आभार.