रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा, एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं।
तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं।
मैं तो पतझर था फिर क्यूँ निमंत्रण दिया
ऋतु बसंती को तन पर लपेटे हुये,
आस मन में लिये प्यास तन में लिये
कब शरद आयी पल्लू समेटे हुये,
तुमने फेरीं निगाहें अँधेरा हुआ, ऐसा लगता है सूरज उगेगा नहीं।
मैं तो होली मना लूँगा सच मानिये
तुम दिवाली बनोगी ये आभास दो,
मैं तुम्हें सौंप दूँगा तुम्हारी धरा
तुम मुझे मेरे पँखों को आकाश दो,
उँगलियों पर दुपट्टा लपेटो न तुम, यूँ करोगे तो दिल चुप रहेगा नहीं।
आँख खोली तो तुम रुक्मिणी सी लगी
बन्द की आँख तो राधिका तुम लगीं,
जब भी सोचा तुम्हें शांत एकांत में
मीरा बाई सी एक साधिका तुम लगी
कृष्ण की बाँसुरी पर भरोसा रखो, मन कहीं भी रहे पर डिगेगा नहीं।
- डा. विष्णु सक्सेना
Thursday, September 1, 2011
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16 comments:
डॉ विष्णु सक्सेना जी के गीत सदा ही मधुर होतें हैं ...शुक्रिया विवेक जी इस पोस्ट में डॉ साहब की रचना पढवाने के लिए
यही विश्वास ही तो जीवन का सार है।
मधुर मधुर मधुर
उत्तम प्रस्तुति ! इतनी सी अपेक्षा रखने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए !
आभार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
ईद की सिवैन्याँ, तीज का प्रसाद |
गजानन चतुर्थी, हमारी फ़रियाद ||
आइये, घूम जाइए ||
http://charchamanch.blogspot.com/
दी गयी उपमाएं कविता के सौन्दर्य पर चार चांद लगा देती है. एक सुन्दर प्रेमगीत..... आभार!
सटीक और सुन्दर प्रस्तुति ...
सुन्दर बिम्ब प्रयोगों के माध्यम से एक बेहतरीन रचना।
सुन्दर अनुभूति....!!
सुन्दर अनुभूति....!!
बहुत सुंदर प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
मैं तो होली मना लूँगा सच मानिये
तुम दिवाली बनोगी ये आभास दो,
मैं तुम्हें सौंप दूँगा तुम्हारी धरा
तुम मुझे मेरे पँखों को आकाश दो,
आप श्रेष्ढ रचनाओं को पढ़ने का अवसर हमें देते हैं, इसके लिए आभार।
जीने के लिए कोई तो प्रेरणा श्रोत होनी ही चाहिए ! सुन्दर भाव पूर्ण कविता ! बधाई
बेहतरीन पंक्तियाँ....
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