Friday, October 7, 2011
वे घड़ियां
क्या इनका कोई अर्थ नहीं
ये शामें, सब की शामें ...
जिनमें मैंने घबरा कर तुमको याद किया
जिनमें प्यासी सीपी-सा भटका विकल हिया
जाने किस आने वाले की प्रत्याशा में
ये शामें
क्या इनका कोई अर्थ नहीं ?
वे लमहें
वे सूनेपन के लमहें
जब मैनें अपनी परछाई से बातें की
दुख से वे सारी वीणाएं फेकीं
जिनमें अब कोई भी स्वर न रहे
वे लमहें
क्या इनका कोई अर्थ नहीं ?
वे घड़ियां, वे बेहद भारी-भारी घड़ियां
जब मुझको फिर एहसास हुआ
अर्पित होने के अतिरिक्त कोई राह नहीं
जब मैंने झुककर फिर माथे से पंथ छुआ
फिर बीनी गत-पाग-नूपुर की मणियां
क्या इनका कोई अर्थ नहीं ?
ये घड़ियां, ये शामें, ये लमहें
जो मन पर कोहरे से जमे रहे
निर्मित होने के क्रम में
क्या इनका कोई अर्थ नहीं ?
जाने क्यों कोई मुझसे कहता
मन में कुछ ऐसा भी रहता
जिसको छू लेने वाली हर पीड़ा
जीवन में फिर जाती व्यर्थ नहीं
अर्पित है पूजा के फूलों-सा जिसका मन
अनजाने दुख कर जाता उसका परिमार्जन
अपने से बाहर की व्यापक सच्चाई को
नत-मस्तक होकर वह कर लेता सहज ग्रहण
वे सब बन जाते पूजा गीतों की कड़ियां
यह पीड़ा, यह कुण्ठा, ये शामें, ये घड़ियां
इनमें से क्या है
जिनका कोई अर्थ नहीं !
कुछ भी तो व्यर्थ नहीं !
-धर्मवीर भारती
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वे घड़ियां
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8 comments:
Beautiful poem, first few lines are so profound.
Saru
sukh dukh jeewan ke do pahloo hain..sukh na ho to dukh ki aaur dukh na ho to sukh ki anubhuti nahi ho paati hai..jisne jeewan dhanabhav me gujara ho wah paisa fizool kharch nahi karega..yah gyan use usi peeda ne diya..jo un chadon ko bhool jaye wah ya to alpbuddhi hai murkh hai...hardik badhayee aaur apne blog per amantran ke sath
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ||
शुभ विजया ||
बहुत बढ़िया ! बेहतरीन प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
सच में कुछ भी व्यर्थ नहीं।
बहुत बढ़िया ! बेहतरीन प्रस्तुती!
धर्मवीर भारती की कविता देकर आपने अच्छा किया. भारती जी की सरल व प्रभाव पूर्ण ढंग से गढ़ी कवितायेँ दिल की गहरे तक उतरती है... बहुत बहुत आभार!
vivek ji
man ki antar vyatha ko bakhoobi parilakxhit karti hui aapki yah kavita dil me gahre utarti hai.shabdon ka samanjasy bahut bahut hi badhiya laga.
bahut hi prabhav shali prastuti
badhai
poonam
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