Thursday, October 27, 2011
शाकाहार
गर्व था भारत-भूमि को के ऋषभदेव-महावीर की माता हूँ।
राम-कृष्ण और नानक जैसे वीरो की यशगाथा हूँ॥
कंद-मूल खाने वालों से मांसाहारी डरते थे।
‘पोरस’ जैसे शूर-वीर को नमन ‘सिकंदर’ करते थे॥
चौदह वर्षों तक खूखारी वन में जिसका धाम था।
मन-मन्दिर में बसने वाला शाकाहारी राम था॥
चाहते तो खा सकते थे वो मांस पशु के ढेरो में।
लेकिन उनको प्यार मिला ‘शबरी’ के झूठे बेरो में॥
माखन चोर मुरारी थे।
शत्रु को चिंगारी थे॥
चक्र सुदर्शन धारी थे।
गोवर्धन पर भारी थे॥
मुरली से वश करने वाले ‘गिरधर’ शाकाहारी थे॥
करते हो तुम बातें कैसे ‘मस्जिद-मन्दिर-राम’ की?
मांसाहारी बनकर लाज लूटली ‘पैगम्बर’ के पैगाम की॥
पर-सेवा पर-प्रेम का परचम चोटी पर फहराया था।
निर्धन की कुटिया में जाकर जिसने मान बढाया था॥
सपने जिसने देखे थे मानवता के विस्तार के।
नानक जैसे महा-संत थे वाचक शाकाहार के॥
उठो जरा तुम पढ़ कर देखो गौरवमयी इतिहास को।
आदम से गाँधी तक फैले इस नीले आकाश को॥
प्रेम-त्याग और दया-भाव की फसल जहाँ पर उगती है।
सोने की चिड़िया, न लहू में सना बाजरा चुगती है॥
दया की आँखे खोल देख लो पशु के करुण क्रंदन को।
इंसानों का जिस्म बना है शाकाहारी भोजन को॥
अंग लाश के खा जाए क्या फ़िर भी वो इंसान है?
पेट तुम्हारा मुर्दाघर है या कोई कब्रिस्तान है?
आँखे कितना रोती हैं जब उंगली अपनी जलती है।
सोचो उस तड़पन की हद जब जिस्म पे आरी चलती है॥
बेबसता तुम पशु की देखो बचने के आसार नहीं
जीते जी तन कटा जाए, उस पीड़ा का पार नही॥
खाने से पहले बिरयानी, चीख जीव की सुन लेते ।
करुणा के वश होकर तुम भी गिरि-गिरनार को चुन लेते॥
-सौरभ सुमन
(जैनमंच.कॉम से उद्धृत)
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13 comments:
पीड़ा बताती कविता।
मार्मिक रचना ......
विवेक जी के मेरे सपने, शाक-आहारी रहो
ख़्वाब हो या कोई हकीकत, कौन हो तुम कुछ कहो
इश्क नचाये जिसको यारा, साथ उसको मत बहो
सरदार बोले उन्नयन पर, कष्ट बे-पनाह सहो |
आपकी उत्कृष्ट पोस्ट का लिंक है क्या ??
आइये --
फिर आ जाइए -
अपने विचारों से अवगत कराइए ||
शुक्रवार चर्चा - मंच
http://charchamanch.blogspot.com/
मांसाहारियों पर करारी चोट. सच, मेरे मन की कह दी आपने. शाखाहारी बनने के फायदे भी गिनाते तो कविता का भाव और भी स्पष्ट हो पाता. आभार.
खाने से पहले बिरयानी, चीख जीव की सुन लेते ।
करुणा के वश होकर तुम भी गिरि-गिरनार को चुन लेते॥
सटीक अभिव्यक्ति !!
आपका जज़्बा अनुकरणीय है।
बढ़िया प्रस्तुति शुभकामनायें आपको !
आप मेरे ब्लॉग पे आये आपका में अभिनानद करता हु
दीप उत्सव स्नेह से भर दीजिये
रौशनी सब के लिये कर दीजिये।
भाव बाकी रह न पाये बैर का
भेंट में वो प्रेम आखर दीजिये।
दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
दिनेश पारीक
कोलेस्ट्राल से बचना है तो वसा के पशु स्रोतों से बच के रहना चाहिए...दूध और उसके उत्पादों से भी...
शाका हार को समादृत करती अति -उत्कृष्ट रचना .निरोगी काया का आधार बना रहगा शाका हार .
मार्मिक रचना ......
नमस्कार, बहुत सुन्दर पंक्तियॉ -दयाकी आखें खोल--- पेट तुम्हारा मुर्दाघ्रर----ब्धाई मेरे ब्लाग पर आप कास्वागत है।
शाकाहार और अहिंसा पर मार्मिक प्रस्तुति!!
आभार
Vegan bank , insaan bano .....!!
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