बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम।
पेड़ खड़े फैलाए बाँहें
लौट रहे घर को चरवाहे
यह गोधूली! साथ नहीं हो तुम
बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम।
कुलबुल कुलबुल नीड़-नीड़ में
चहचह चहचह मीड़-मीड़ में
धुन अलबेली, साथ नहीं हो तुम,
बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम।
जागी-जागी सोई-सोई
पास पड़ी है खोई-खोई
निशा लजीली, साथ नहीं हो तुम,
बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम।
ऊँचे स्वर से गाते निर्झर
उमड़ी धारा, जैसी मुझपर -
बीती झेली, साथ नहीं हो तुम
बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम।
यह कैसी होनी-अनहोनी
पुतली-पुतली आँखमिचौनी
खुलकर खेली, साथ नहीं हो तुम,
बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, साथ नहीं हो तुम।
-शिवमंगल सिंह 'सुमन'
Tuesday, November 15, 2011
सूनी साँझ
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19 comments:
अनुपम साहित्यिक सौन्दर्य।
बेहतरीन प्रस्तुति ।
कल 16/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है।
धन्यवाद!
बहुत अच्छी प्रस्तुति !
बहत सुन्दर प्रस्तुति...
अनमोल साहित्य सृजन..
लाजवाब ... एक से बड के एक सुन्दर रचनाओं का संकलन है आपका ब्लॉग ... धन्यवाद ...
सुमनजी की रचनाएँ मुझे काफी पसंद हैं ..आभार
सुंदर प्रस्तुति!
बहुत ही सुन्दर भाव...शाम को निहारने का मौका भी तब मिलता है...जब साथ नहीं हो तुम...
सुन्दर गीत...
सादर आभार...
बहुत सुन्दर.
पढकर आनंद आ गया है.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
बहुत ही सुन्दर भावो से भरपूर्ण रचना.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति .. शिवमंगल सिंह सुमन के गीत हमेशा ही प्रेरित करते हैं
बहुत खूब सर!
सादर
खूबसूरत सा एहसास है
पर तुम साथ नहीं.....!!
anupam.....
आपका संग्रह कल के लिए कल की धरोहर है. आपका आभार.
prtyek pankti par wah wah
ati sundar rachana.....
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