इस सोते संसार बीच,
जग कर सज कर रजनी बाले!
कहाँ बेचने ले जाती हो,
ये गजरे तारों वाले?
मोल करेगा कौन,
सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी।
मत कुम्हलाने दो,
सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी॥
निर्झर के निर्मल जल में,
ये गजरे हिला हिला धोना।
लहर हहर कर यदि चूमे तो,
किंचित् विचलित मत होना॥
होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित,
लहरों ही में लहराना।
'लो मेरे तारों के गजरे'
निर्झर-स्वर में यह गाना॥
यदि प्रभात तक कोई आकर,
तुम से हाय! न मोल करे।
तो फूलों पर ओस-रूप में
बिखरा देना सब गजरे॥
- रामकुमार वर्मा
Saturday, July 2, 2011
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24 comments:
अहा।
bahut hi pyaari kavita.ati sunder.
डॉ .राम कुमार वर्मा के "तारे गजरों वाले ...."लेके कहाँ चली मतवाली रात .क्या चयन है विवेक जी आपका भी एक कविता से बढ़कर एक प्रतिनिधिक रचनाएं रचनाकारों की आप ला रहें हैं /शुक्रिया .
सुन्दर भावयुक्त कविता....
sunder bhav poorn kavita
रात्रि का विषद चित्रण स्वर्गीय राम कुमार वर्मा के शब्दों में पढ़ कर मज़ा आ गया...अपने युग के मूर्धन्य साहित्यकारों को पढवाने के लिए धन्यवाद...
तुम से हाय! न मोल करे।
तो फूलों पर ओस-रूप में
बिखरा देना सब गजरे॥
bahut sundar prastuti.aabhar vivek ji.
रामकुमार वर्मा जी के (यदि मै गलत नहीं हूँ तो) कौमिदी महोत्सव, औरंगजेब की आखिरी रात अदि नाटक इतने गहरे मन में बैठे हुए हैं कि बयां नहीं कर सकता. परन्तु उनकी कवितायेँ भी दिल को छू लेती थी. "...प्रिय तुम भूले मै क्या गाऊँ, जिस ध्वनि में तुम बसे ......" महबूबा फिल्म के "..मेरे नैना सावन भादों, फिर भी मेरा मन प्यासा......." से ज्यादा मन को भाता था.......
इतने वर्षों बाद उनकी कविता आज फिर पढने को मिली तो आपका आभार किस प्रकार व्यक्त करूं.
सही है भाई ||
vaah vaah मजा आ गया छांट कर मोल लाते हो आप कविताएं
पढ़कर बहुत अच्छा लगा!
nice poem.
kuchh vilakshan sa hai kavita me...
भुत लाजवाब कविता है राम कुमार जी की ...
भुत लाजवाब कविता है राम कुमार जी की ...
बहुत सुन्दर रचना
होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित,
लहरों ही में लहराना।
'लो मेरे तारों के गजरे'
निर्झर-स्वर में यह गाना॥
वह अति सुन्दर..
क्या सुन्दर प्रस्तुती..आनंददायक
शुक्रिया भाई विवेक जी .ऐसी टिप्पणी अकसर लेखन को देह्काती रहतीं हैं .
nice and heart touching .
Asha
सुन्दर अभिव्यक्ति। शुभ.का.
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी!
सुन्दर भावयुक्त कविता.
बहुत बहुत आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
तुम से हाय! न मोल करे।
तो फूलों पर ओस-रूप में
बिखरा देना सब गजरे॥
पहली बार पढ़ी डा. साहब की यह रचना बहुत अच्छी लगी
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