पी के फूटे आज प्यार के
पानी बरसा री
हरियाली छा गई,
हमारे सावन सरसा री
बादल छाए आसमान में,
धरती फूली री
भरी सुहागिन, आज माँग में
भूली-भूली री
बिजली चमकी भाग सरीखी,
दादुर बोले री
अंध प्रान-सी बही,
उड़े पंछी अनमोले री
छिन-छिन उठी हिलोर
मगन-मन पागल दरसा री
फिसली-सी पगडंडी,
खिसकी आँख लजीली री
इंद्रधनुष रंग-रंगी आज मैं
सहज रंगीली री
रुन-झुन बिछिया आज,
हिला डुल मेरी बेनी री
ऊँचे-ऊँचे पैंग हिंडोला
सरग-नसेनी री
और सखी, सुन मोर विजन
वन दीखे घर-सा री
फुर-फुर उड़ी फुहार
अलक दल मोती छाए री
खड़ी खेत के बीच किसानिन
कजली गाए री
झर-झर झरना झरे
आज मन-प्रान सिहाये री
कौन जनम के पुन्न कि ऐसे
औसर आए री
रात सखी सुन, गात मुदित मन
साजन परसा री
-भवानीप्रसाद मिश्र
Friday, July 8, 2011
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17 comments:
शब्द बरसते, सावन री।
पी के फूटे आज प्यार के
पानी बरसा री
हरियाली छा गई,
हमारे सावन सरसा री........
abhaar uprokt rachna ko sajha krne hetu.........
बहुत सुन्दर रचना
बहुत अच्छी रचना पढ़वाई आपने।
बादल छाए आसमान में,
धरती फूली री
भरी सुहागिन, आज माँग में
भूली-भूली री
वाह. बहुत ही बढ़िया रचना के लिए आभार.
बढ़िया रचना लगाई है आपने!
बादल छाए आसमान में,
धरती फूली री
भरी सुहागिन, आज माँग में
भूली-भूली री
बिजली चमकी भाग सरीखी,
दादुर बोले री
अंध प्रान-सी बही,
उड़े पंछी अनमोले री
इस ऊबड़-खाबड़ गद्य कविता समय में आपने अपनी भाषा का माधुर्य और गीतात्मकता को बचाए रखा है।
बहुत सुन्दर रचना.....
कोमल भाव की श्रृंगारिक रचना भवानी दा की आपने पढवाई पढ़ते हुए लगा साथ साथ कोई गुनगुना रहा है -
फिसली सी पगडण्डी खिसकी आज लजीली री ,(बिजली चमकी भाग सखी री ...हाँ इसे ठीक कर लें -"सरीखी "को ),पूरे गीत में अनुप्रयास की छटा बिखरी हुई है -झर झर झरना झरे ...भरी सुहागिन, आज मांग में ,भूली भूली री .....आभार विवेक जी .
दिनकर जी और मिश्र जी रचनाएं प्रस्तुत करने के लिये आभार संग्रहणीय रचनाओं का ब्लॉग बहुत अच्छा प्रयास
Mishr ji ki bahut pyari kavita padhvaai hai apne apka bahut bahut aabhar.aap mere blog par aaye iske liye shukriya.isi tarah aapka hamesha swagat hai.
बहुत खूब लिखते हैं आप ....
फुर-फुर उड़ी फुहार
अलक दल मोती छाए री
बहुत ही सुन्दर!
Simply loved it.
your posts are worth a read.
भवानी प्रसाद जी की सुन्दर कविता ! सावन तो खुशियों का मास है धन्यबाद इस प्रस्तुति के लिए !
आदरणीय भवानी प्रसाद मिश्र जी का सुन्दर,मनमोहक पावस गीत पढ़कर मन आनंदित हो गया
बहुत-बहुत आभार .....
बहुत सुंदर
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