Tuesday, July 12, 2011

बौराए बादल?

क्या खाकर बौराए बादल?
झुग्गी-झोंपड़ियाँ उजाड़ दीं
कंचन-महल नहाए बादल!

दूने सूने हुए घर
लाल लुटे दृग में मोती भर
निर्मलता नीलाम हो गयी
घेर अंधेर मचाए बादल!

जब धरती काँपी, बड़ बोले-
नभ उलीचने चढ़े हिंडोले,
पेंगें भर-भर ऊपर-नीचे
मियाँ मल्हार गुँजाए बादल!

काली रात, नखत की पातें-
आपस में करती हैं बातें
नई रोशनी कब फूटेगी?
बदल-बदल दल छाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!

-जानकीवल्लभ शास्त्री

24 comments:

रविकर said...

बदल-बदल दल छाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!

बहुत ही सुन्दर ||बधाई ||

Unknown said...

काली रात, नखत की पातें-
आपस में करती हैं बातें
नई रोशनी कब फूटेगी?
बदल-बदल दल छाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!


waah brillient collection.

virendra sharma said...

"शोषण और बदलाव के लिए आतुर "कवि मन बादल की मार्फ़त अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहा है .बदल -बदल दल छाये बादल ,कंचन महल नहाए बादल .जानकी बल्लभ जी की इस रचना पढवाई के लिए शुक्रिया जैन साहब का .

शारदा अरोरा said...

shabdon ka tana bana sundar ban pada hai...

Asha Lata Saxena said...

बादल के माध्यम से बहुत गहन बाट कही है |बधाई
आशा

Dr (Miss) Sharad Singh said...

स्व.जानकीवल्लभ शास्त्री जी का ऋतुपरक भावपूर्ण गीत प्रस्तुत करने के लिए आभार...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर बादलगीत!

Dr Varsha Singh said...

जब धरती काँपी, बड़ बोले-
नभ उलीचने चढ़े हिंडोले,
पेंगें भर-भर ऊपर-नीचे
मियाँ मल्हार गुँजाए बादल!

जानकीवल्लभ शास्त्री जी का सुन्दर गीत प्रस्तुत करने के लिए आभार...

प्रवीण पाण्डेय said...

सबके सपने, उनके अपने,
नहीं कभी क्यों लाये बादल।

Bharat Bhushan said...

काली रात, नखत की पातें-
आपस में करती हैं बातें
नई रोशनी कब फूटेगी?

बहुत अच्छी पंक्तियाँ.

Atul Shrivastava said...

सुंदर रचना।
मानसून दगा दे रहा है यहां पर आपकी रचना ने भिगो दिया।
शुभकामनाएं...........

Vandana Ramasingh said...

जब धरती काँपी, बड़ बोले-
नभ उलीचने चढ़े हिंडोले,
पेंगें भर-भर ऊपर-नीचे
मियाँ मल्हार गुँजाए बादल!
अच्छी रचना

Rajesh Kumari said...

Jaanki vallabh ji ka geet bahut pyara laga sikke ke dono hi pahluon par drashti daali hai.bahut badhaai.

Jyoti Mishra said...

awesome choice of words..
Loved it

रेखा said...

बहुत ही सार्थक और सटीक रचना

Maheshwari kaneri said...

सुन्दर और सार्थक रचना....

sm said...

beautiful poem

virendra sharma said...

क्या करें विवेक जी पूरा निजाम ही इस समय रोबोट बना हुआ है .बिजूका बना खडा हुआ है ऊपर से तुर्रा देखो -वोट मिला भई,वोट मिला ,पांच साल का वोट मिला .हम तो इन दिनों रहतें ही मुंबई के कोलाबा नगर स्थित नेवी नगर में .मुंबई शहर की नागरता ,सिविलिती ये धमाके नष्ट कर रहें हैं .
४३ ३०९ ,केंटन ,मिशिगन -४८८ १८८ .

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना ! शानदार प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

विवेक जैन जी -सुन्दर संकलन और लाजबाब प्रस्तुति धन्यवाद आप का -बादलों के अनेक रूप दिखा दिए
आभार आप का
शुक्ल भ्रमर ५
दूने सूने हुए घर
लाल लुटे दृग में मोती भर
निर्मलता नीलाम हो गयी
घेर अंधेर मचाए बादल!

दर्शन कौर धनोय said...

क्या बात हैं ...जानकीवल्लभ शास्त्री जी की उम्दा कविता के ...

सुधीर राघव said...

सुन्दर

sm said...

thoughtful poem

Vivek Jain said...

सभी का बहुत बहुत आभार,
विवेक जैन