लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में
बुलबुल को बागबां से न सैय्याद से गिला
किस्मत में कैद थी लिखी फ़स्ले बहार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में
इक शाख़-ए-गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमां
कांटे बिछा दिए हैं दिल-ए-लालाज़ार में
उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में
दिन जिंदगी के ख़त्म हुए शाम हो गई
फैला के पाँव सोयेंगे कुंजे मज़ार में
कितना है बदनसीब "ज़फ़र" दफ़्न के लिये
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
-ज़फ़र
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22 comments:
वाह।
लाज़वाब गज़ल पढवाने के लिये आभार..
बहुत बढ़िया गजल |
भाई गजल ही है न |
नज्म किसे कहते हैं --
बताना कोई ||
उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में
विवेक जी! हेडिंग में 'दायर' हो गया है, सुधार लीजिये बाकी रचना तो निर्विवाद रूप से बेजोड़ है ही...
उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में
जफ़र का मातृभूमि के प्रति प्रेम उजागर करता शेर
बुलबुल को बागबां से न सैय्याद से गिला
किस्मत में कैद थी लिखी फ़स्ले बहार में
जफ़र साहब की यह ग़ज़ल बेशक बहुत उम्दा है. आभार आपका.
waah...
Jafar ji ki sunder ghazal padhvaane ke liye bahut aabhar.
जफ़र साहब की बहुत उम्दा ग़ज़ल है..... आभार
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
waah waah... aanand aa gaya
बहुत सुंदर।
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जीवन का सूत्र...
लोग चमत्कारों पर विश्वास क्यों करते हैं?
ज़फर का दर्द बयां करती ग़ज़ल...
शहीद और शायर आखिरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र साहब की यह नज्म हबीब पेंटर की आवाज़ में बचपन से सुनते आयें हैं .रफ़ी साहब की आवाज़ में भी सुनी .क्या ज़ज्बा इन लोगों में .दिल की बात कहते थे दिल से .कृपया मुश्किल लफ़्ज़ों के मायने लिख दें विवेक जी .
वीरूभाई साहब, आगे से ध्यान रखूंगा और शब्दार्थ भी देने की कोशिश करुंगा, आपके सुझाव का धन्यवाद,
विवेक जैन
सुंदर सुंदर कविताएँ पढवा रहा है आपका ये बलॉग । बहादुर शाह जफर की ये गज़ल तो नायाब है ।
दिन जिंदगी के ख़त्म हुए शाम हो गई
फैला के पाँव सोयेंगे कुंजे मज़ार में ।
कुंजे है कि कूचा-ए है यदि कुंजे है तो इसका अर्थ भी बता दें वैसे ही, लालाज़ार का मतलब भी नही मालूम ।
भाई बहुत ही सुन्दर गजल बधाई जफर साहब को पढ़ना मुझे भी अच्छा लगता है |
यह ग़ज़ल सैंकड़ों बार सुनी है परंतु आज भी ताज़ातरीन लगती है.
vivek ji.....waakayi me shaandaar........one of my fav gazhal..........bahaadur shah jafar saahab ne b kya khub likhi hai........:)
regards
naveen solanki
ग़ज़ल के कुछ नए बंद प्रस्तुत करने के लिए आभार !
ज़फर साहब..क्या खूब लिख गए..!!!! उम्दा..!!!! बेहतरीन..!!!
शुक्रिया..ग़ज़ल पढने का मौका मिला..!!!
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