Friday, July 22, 2011

ज़िंदगी की कहानी

ज़िंदगी की कहानी रही अनकही !
दिन गुज़रते रहे, साँस चलती रही !

अर्थ क्या ? शब्द ही अनमने रह गए,
कोष से जो खिंचे तो तने रह गए,
वेदना अश्रु-पानी बनी, बह गई,
धूप ढलती रही, छाँह छलती रही !

बाँसुरी जब बजी कल्पना-कुंज में
चाँदनी थरथराई तिमिर पुंज में
पूछिए मत कि तब प्राण का क्या हुआ,
आग बुझती रही, आग जलती रही !

जो जला सो जला, ख़ाक खोदे बला,
मन न कुंदन बना, तन तपा, तन गला,
कब झुका आसमाँ, कब रुका कारवाँ,
द्वंद्व चलता रहा पीर पलती रही !

बात ईमान की या कहो मान की
चाहता गान में मैं झलक प्राण की,
साज़ सजता नहीं, बीन बजती नहीं,
उँगलियाँ तार पर यों मचलती रहीं !

और तो और वह भी न अपना बना,
आँख मूंदे रहा, वह न सपना बना !
चाँद मदहोश प्याला लिए व्योम का,
रात ढलती रही, रात ढलती रही !

यह नहीं जानता मैं किनारा नहीं,
यह नहीं, थम गई वारिधारा कहीं !
जुस्तजू में किसी मौज की, सिंधु के-
थाहने की घड़ी किन्तु टलती रही !

-जानकीवल्लभ शास्त्री

17 comments:

Maheshwari kaneri said...

यह नहीं जानता मैं किनारा नहीं,
यह नहीं, थम गई वारिधारा कहीं !
जुस्तजू में किसी मौज की, सिंधु के-
थाहने की घड़ी किन्तु टलती रही !....बहुत सुन्दर..धन्यवाद...

सदा said...

बहुत बढि़या ...।

Shalini kaushik said...

बात ईमान की या कहो मान की
चाहता गान में मैं झलक प्राण की,
साज़ सजता नहीं, बीन बजती नहीं,
उँगलियाँ तार पर यों मचलती रहीं !
sundar prastuti

Kunwar Kusumesh said...

बहुत सुन्दर.

रविकर said...

सुन्दर भावाभिव्यक्ति ||
बधाई ||

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

बहुत सुन्दर !

Arvind kumar said...

और तो और वह भी न अपना बना,
आँख मूंदे रहा, वह न सपना बना !
चाँद मदहोश प्याला लिए व्योम का,
रात ढलती रही, रात ढलती रही !

bahut sundar post hai....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर गीत से मुलाक़ात कराने हेतु आभार...
सादर...

Kailash Sharma said...

जो जला सो जला, ख़ाक खोदे बला,
मन न कुंदन बना, तन तपा, तन गला,
कब झुका आसमाँ, कब रुका कारवाँ,
द्वंद्व चलता रहा पीर पलती रही !...

बहुत सुन्दर गीत पढवाने के लिये आभार..

JAGDISH BALI said...

Excellent piece

sm said...

कब झुका आसमाँ, कब रुका कारवाँ,
द्वंद्व चलता रहा पीर पलती रही
beautiful poem

Unknown said...

सुन्दर भावाभिव्यक्ति

Anonymous said...

nice one

Rakesh Kumar said...

बात ईमान की या कहो मान की
चाहता गान में मैं झलक प्राण की,
साज़ सजता नहीं, बीन बजती नहीं,
उँगलियाँ तार पर यों मचलती रहीं !

सुन्दर भावों की संगीतमयी प्रस्तुति.
हर शब्द गुंजायमान हो रहा है.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

Asha Lata Saxena said...

अच्छी प्रस्तुति |सुन्दर शब्द चयन |
बधाई |
आशा

प्रवीण पाण्डेय said...

अनुपम रचना।

Vivek Jain said...

बहुत बहुत आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com