तन का दिया, प्राण की बाती,
दीपक जलता रहा रात-भर ।
दु:ख की घनी बनी अँधियारी,
सुख के टिमटिम दूर सितारे,
उठती रही पीर की बदली,
मन के पंछी उड़-उड़ हारे ।
बची रही प्रिय की आँखों से,
मेरी कुटिया एक किनारे,
मिलता रहा स्नेह रस थोडा,
दीपक जलता रहा रात-भर ।
दुनिया देखी भी अनदेखी,
नगर न जाना, डगर न जानी;
रंग देखा, रूप न देखा,
केवल बोली ही पहचानी,
कोई भी तो साथ नहीं था,
साथी था ऑंखों का पानी,
सूनी डगर सितारे टिमटिम,
पंथी चलता रहा रात-भर ।
अगणित तारों के प्रकाश में,
मैं अपने पथ पर चलता था,
मैंने देखा, गगन-गली में,
चाँद-सितारों को छलता था ।
आँधी में, तूफ़ानों में भी,
प्राण-दीप मेरा जलता था,
कोई छली खेल में मेरी,
दिशा बदलता रहा रात-भर ।
-गोपाल सिंह नेपाली
Sunday, July 24, 2011
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21 comments:
आँधी में, तूफ़ानों में भी,
प्राण-दीप मेरा जलता था,
कोई छली खेल में मेरी,
दिशा बदलता रहा रात-भर
gopal singh nepali ki sundar kavita se parichit karane ke liye aabhar
अगणित तारों के प्रकाश में,
मैं अपने पथ पर चलता था,
मैंने देखा, गगन-गली में,
चाँद-सितारों को छलता था ।
खूबसूरत शब्द , अच्छी प्रस्तुति बधाई
आत्मदीपक जल रहा है।
दुनिया देखी भी अनदेखी,
नगर न जाना, डगर न जानी;
रंग देखा, रूप न देखा,
केवल बोली ही पहचानी,
कोई भी तो साथ नहीं था,
साथी था ऑंखों का पानी,
सूनी डगर सितारे टिमटिम,
पंथी चलता रहा रात-भर ।
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ ! इस भावपूर्ण और लाजवाब रचना के लिए बधाई!
कोई छली खेल में मेरी,
दिशा बदलता रहा रात-भर
आँधी में, तूफ़ानों में भी,
प्राण-दीप मेरा जलता था,
कोई छली खेल में मेरी,
दिशा बदलता रहा रात-भर ...बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ !आभार..
खूबसूरत ... परें विरह .. सब कुछ तो है इस मधुर गीत में ...
अगणित तारों के प्रकाश में,
मैं अपने पथ पर चलता था,
मैंने देखा, गगन-गली में,
चाँद-सितारों को छलता था ।
सुन्दर रचना पढवाने के लिए धन्यवाद.
बेहतरीन कविता पढवाने के लिये आभार ..
आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है!
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी का बहुत बहुत आभार,
-विवेक जैन
'जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना,अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए !' नेपाली जी कि मशहूर कविता बचपन में पढ़ी थी ! यह कविता भी अच्छी है !
अगणित तारों के प्रकाश में,
मैं अपने पथ पर चलता था,
मैंने देखा, गगन-गली में,
चाँद-सितारों को छलता था ।
Beautiful expression !
बेहतरीन कविता पढवाने के लिये आभार ..
सुंदर रचना पढ़वाने के लिए आभार.
अगणित तारों के प्रकाश में,
मैं अपने पथ पर चलता था,
मैंने देखा, गगन-गली में,
चाँद-सितारों को छलता था ।
गोपाल सिंह नेपाली जी के काव्य संसार से परिचय करवाने के लिए आभार.
सादर,
डोरोथी.
सुंदर अभिव्यक्ति ,गोपाल सिंह नेपाली जी को पढ़ना सुखद है.
बेहतरीन।
सादर
नेपाली जी की रचना पढवाने के लिए आभार
दु:ख की घनी बनी अँधियारी,
सुख के टिमटिम दूर सितारे,
उठती रही पीर की बदली,
मन के पंछी उड़-उड़ हारे ।
बहुत सुंदर...
तन का दिया, प्राण की बाती,
दीपक जलता रहा रात-भर ।
दु:ख की घनी बनी अँधियारी,
खुशी के टिमटिम दूर सितारे,
उठती रही पीर की बदली,
मन के पंछी उड़-उड़ हारे ।
बची रही प्रिय की आँखों से,
मेरी कुटिया एक किनारे,
मिलता रहा स्नेह रस थोडा,
दीपक जलता रहा रात-भर ।
दुनिया देखी भी अनदेखी,
नगर न जाना, डगर न जानी;
रंग देखा, रूप न देखा,
केवल बोली ही पहचानी,
कोई भी तो साथ नहीं था,
साथी था ऑंखों का पानी,
सूनी डगर सितारे टिमटिम,
पंथी चलता रहा रात-भर
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