Thursday, July 28, 2011

दीप कहीं सोता है

दीप कहीं सोता है
पुजारी दीप कहीं सोता है!

जो दृग दानों के आभारी
उर वरदानों के व्यापारी
जिन अधरों पर काँप रही है
अनमाँगी भिक्षाएँ सारी
वे थकते, हर साँस सौंप देने को यह रोता है।

कुम्हला चले प्रसून सुहासी
धूप रही पाषाण समा-सी
झरा धूल सा चंदन छाई
निर्माल्यों में दीन उदासी
मुसकाने बन लौट रहे यह जितने पल खोता है।

इस चितवन की अमिट निशानी
अंगारे का पारस पानी
इसको छूकर लौह तिमिर
लिखने लगता है स्वर्ण कहानी
किरणों के अंकुर बनते यह जो सपने बोता है।

गर्जन के शंखों से हो के
आने दो झंझा के झोंके
खोलो रुद्ध झरोखे, मंदिर
के न रहो द्वारों को रोके
हर झोंके पर प्रणत, इष्ट के धूमिल पग धोता है।

लय छंदों में जग बँध जाता
सित घन विहग पंख फैलाता
विद्रुम के रथ पर आता दिन
जब मोती की रेणु उड़ाता
उसकी स्मित का आदि, अंत इसके पथ का होता है।
-महादेवी वर्मा

8 comments:

Unknown said...

श्रेष्ठ साहित्य का रसास्वादन के लिए आप बधाई के पत्र है

प्रवीण पाण्डेय said...

पुरातन श्रेष्ठ साहित्य पढ़वाने का आभार।

Maheshwari kaneri said...

महादेवी व्रर्मा जी की सुन्दर रचनाएं पढ़ कर ही हम बड़े हुए..आज फिर बड़े दिनॊ बाद पढ़ी बहुत अच्छी लगी...आभार

रेखा said...

महादेवी वर्माजी की रचना पढ़वाने के लिए आभार ....

Vaanbhatt said...

महादेवी जी की धरोहर से एक मोती शेयर करने के लिए...धन्यवाद...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुन्दर रचना पढवाने के लिए आभार

Anupama Tripathi said...

कल ,शनिवार (३०-७-११)को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है ,नई -पुराणी हलचल पर ...कृपया अवश्य पधारें...!!

Anupama Tripathi said...

कल ,शनिवार (३०-७-११)को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है ,नई -पुराणी हलचल पर ...कृपया अवश्य पधारें...!!