Tuesday, September 20, 2011
शहीदों की चिताओं पर
उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा
चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा
ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा
- जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’
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17 comments:
last two lines are beautiful...Thanks for sharing such touching poem...
कई शब्द पता नहीं हैं लेकिन इसकी मशहूर कड़ी से परिचित था। इसके रचनाकार का नाम पता चला। धन्यवाद।
कवि के बारे में परिचय नहीं था, आभार।
आभार ||
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा ..
वतन पे जो फ़िदा होगा अमर वो नो जवां होगा ...
देश भक्ति का ज्वार उठाती लाजवाब गज़ल ... शुक्रिया ..
अच्छी रचना पढ़ने का मौका मिला ....आभार
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा
यह शेर लगभग प्रत्येक हिन्दुस्तानी की जुबां पर होगा. किन्तु इसके रचियता कौन है, विरले ही जानते होंगे. मै भी आज ही जान पाया. बहुत बहुत आभार.
एक निवेदन मेरा है कि रचना से पूर्व आप रचियता का संक्षिप्त परिचय यदि दे सकें तो जिज्ञासुओं की उत्सुकता कुछ शांत हो सकेगी.
उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा
यह सपना कब पूरा होगा ...
रचनाकार का नाम पता चला आभार
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा..
.इन महान पँक्तियो के महान रचनाकार का नाम आज पता चला...आभार
आपने जगदम्बा प्रसाद मिश्र जी की सुन्दर अभिव्यक्ति को प्रस्तुत कर मन प्रसन्न कर
दिया है.
सुन्दर 'विवेक'पूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.
आपका १०१ वा फालोअर बनने का मुझे
गौरव प्राप्त हुआ इसके लिए भी आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
ऐसे ओजपूर्ण कविताओं की कमी सी लगती है आजकल..
ज्यादा पढने को नहीं मिलता है..
आपने जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’जी की ये देश-विभोर कविता पढाई, उसके लिए धन्यवाद!
आभार
तेरे-मेरे बीच पर आपके विचारों का इंतज़ार है...
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का बहुत बहुत आभार विवेक भाई.
प्रवीण जी की डिमांड अपन की भी ! सुन्दर प्रयास !
अच्छी रचना पढ़वाने के लिए आभार ...
मुख्य पंक्तियाँ तो अक्सर सुनी जातीं हैं...पूरी ग़ज़ल पढवाने का शुक्रिया...
टुकड़ों में इस सुना था. पूरी ग़ज़ल उपलब्ध कराने के लिए आपको बहुत धन्यवाद.
.
प्रिय विवेक जी
नमस्ते !
अमर रचनाकार श्री जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’जी की इस रचना के लिए आपको जितना धन्यवाद कहूं, कम होगा …
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशां होगा
शायद ही कोई ऐसा साहित्य-प्रेमी होगा , जिसे ये दो पंक्तियां स्मरण नहीं हो …
हमेशा आपने अच्छी रचनाएं बांटने का ही यत्न किया है …
♥ हार्दिक आभार ! बधाई ! शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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