Monday, October 31, 2011

सैनिक की मौत

तीन रंगो के
लगभग सम्मानित से कपड़े में लिपटा
लौट आया है मेरा दोस्त

अखबारों के पन्नों
और दूरदर्शन के रूपहले परदों पर
भरपूर गौरवान्वित होने के बाद
उदास बैठै हैं पिता
थककर स्वरहीन हो गया है मां का रूदन
सूनी मांग और बच्चों की निरीह भूख के बीच
बार-बार फूट पड़ती है पत्नी

कभी-कभी
एक किस्से का अंत
कितनी अंतहीन कहानियों का आरंभ होता है
और किस्सा भी क्या?
किसी बेनाम से शहर में बेरौनक सा बचपन
फिर सपनीली उम्र आते-आते
सिमट जाना सारे सपनो का
इर्द-गिर्द एक अदद नौकरी के

अब इसे संयोग कहिये या दुर्योग
या फिर केवल योग
कि देशभक्ति नौकरी की मजबूरी थी
और नौकरी जिंदगी की
इसीलिये
भरती की भगदड़ में दब जाना
महज हादसा है
और फंस जाना बारूदी सुरंगो में
शहादत!

बचपन में कुत्तों के डर से
रास्ते बदल देने वाला मेरा दोस्त
आठ को मार कर मरा था
बारह दुशमनों के बीच फंसे आदमी के पास
बहादुरी के अलावा और चारा भी क्या है?

वैसे कोई युद्ध नहीं था वहाँ
जहाँ शहीद हुआ था मेरा दोस्त
दरअसल उस दिन
अखबारों के पहले पन्ने पर
दोनो राष्ट्राध्यक्षों का आलिंगनबद्ध चित्र था
और उसी दिन ठीक उसी वक्त
देश के सबसे तेज चैनल पर
चल रही थी
क्रिकेट के दोस्ताना संघर्षों पर चर्चा

एक दूसरे चैनल पर
दोनों देशों के मशहूर शायर
एक सी भाषा में कह रहे थे
लगभग एक सी गजलें
तीसरे पर छूट रहे थे
हंसी के बेतहाशा फव्वारे
सीमाओं को तोड़कर

और तीनों पर अनवरत प्रवाहित
सैकड़ों नियमित खबरों की भीड़ मे
दबी थीं
अलग-अलग वर्दियों में
एक ही कंपनी की गोलियों से बिंधी
नौ बेनाम लाशों

अजीब खेल है
कि वजीरों की दोस्ती
प्यादों की लाशों पर पनपती है
और
जंग तो जंग
शांति भी लहू पीती है!

-अशोक कुमार पाण्डेय

15 comments:

Rakesh Kumar said...

गजब की हृदयस्पर्शी और मार्मिक प्रस्तुति है आपकी.दिल और दिमाग को आन्दोलित करती हुई.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

Rajesh Kumari said...

bahut marmik harday sparshi ek sachchaai jo daastan ban kar rah gai.salute us bahadur naujavaan ko.vese to marte hain sabhi kintu ek sammanjanak maut sabhi ko naseeb nahi hoti.uski kurbaani par fakra kijiye.

सदा said...

भावमय करती शब्‍द रचना ।

चंदन कुमार मिश्र said...

पढ़ा है पहले भी…सैनिक और शासक का यह अन्तर हमेशा से रहा है…हालांकि सैनिक को शायद पैसा अधिक प्यारा होता है, देश भी होता होगा, पर कम को ही…

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अजीब खेल है
कि वजीरों की दोस्ती
प्यादों की लाशों पर पनपती है
और
जंग तो जंग
शांति भी लहू पीती है!


बहुत मार्मिक और सच को कहती अच्छी रचना

अनुपमा पाठक said...

मार्मिक प्रस्तुति!

Human said...

भावों को बहुत अच्छे से व्यक्त किया है आपने,जय हिंद !

प्रवीण पाण्डेय said...

जंग तो जंग
शांति भी लहू पीती है!

यादगार रचना।

Vaanbhatt said...

प्यादों के भरोसे ही ये लड़ाई चल रही है...सियासतदाँ तो साझे वादे कर रहे हैं...

Maheshwari kaneri said...

बहुत ही हृदयस्पर्शी और मार्मिक प्रस्तुति है ..

shikha varshney said...

दिल को झकझोरती हुई अभिव्यक्ति.

Dr.NISHA MAHARANA said...

कभी-कभी
एक किस्से का अंत
कितनी अंतहीन कहानियों का आरंभ होता है.मार्मिक प्रस्तुति.

Kunwar Kusumesh said...

मार्मिक प्रस्तुति .

Asha Joglekar said...

वजीरों की दोस्ती
प्यादों की लाशों पर पनपती है
और
जंग तो जंग
शांति भी लहू पीती है!

दर्द को कुरेदती सी कविता । बेहद मार्मिक ।

चंदन said...

सही कहा आपने शान्ति भी खून मांगती है|
पर सैनिकों कि दुर्दशा सेना के ऊपर राजनीती के हावी होने के हीन कारण हैं