Friday, July 16, 2010

भारत-पथिक

1

चतुर्दिक भूमि कण्टका-कीर्ण अंधेरा छाया था सब ओर,
मार्ग के चिन्ह हुए थे लुप्त, घटा घुमड़ी थी नभ में घोर
बुद्धि की सूझ हुई थी मंद, प्रेरणा की गति भी निस्पंद,
खेल सब आशा के थे बंद, कष्ट का नहीं कहीं था छोर।

2

भटक कर चला गया था दूर, मानसिक शक्ति हुई ही चूर,
बजे टूटी तन्ने के तार- नहीं क्या होगा अब उद्धार।
जगत में व्याप हुई वह हूक, न निष्फल गई हृदय की कूक,
कहीं से मिला एक संकेत- बना वह काँटों में आधार।

3

तमिस्रा हुई गगन में लीन, दिशा ने पाई दृष्टि नवीन,
सजाया नेत्रों ने मृदु मार्ग, पलक प्रिय बने पाँवड़े पीन,
उदित हुई जब पूर्व के द्वार, पहिन कर ऊषा मुक्त हार,
समीरि सौरभ ने ली तान, बजी पुलकित मुकुलों की बीन।
प्रफुल्लित मृदु-मुकुलों को देख, मिलाया विधि ने सीकर एक,
सफल उनके जीवन हो गए हुई सब नीर सताएँ क्षीण।

4

श्वास ने प्राप्त हो किया विश्वास, सहज ही स्वच्छ हुआ उच्छास,
किरण का जाल पसार-पसार, किया ऊषा ने मंजुल हास,
उच्चरित हुआ विश्व का प्राण, भूला पथिक पा गया प्राण,
पवन के कण-कण का उद्भास जाकर करने लगा विलास।

5

बढ़ा किरणों का क्रमश: दाप कभी मृदुल कभी आप,
किए सब क्षीण पुराने शाप, तपों से धर निज रूप कठोर,
भक्त ने की, प्रणाम सौ बार, कभी तो हुई नहीं स्वीकार,
कभी कर भी ली अंगीकार, हृदय में पीर उठी झकझोर।

6

बुरा हूँ तो किसका हूँ देव भला हूँ किसका हूँ भक्त
दया सब बनी रहे अविराम कमी है नहीं तुम्हारे पास
हुई यदि हँसी भक्त की कभी बिगड़ता तो उसका कुछ नहीं,
प्रभामय होते हैं निरपेक्ष जगत में होगा यह उपहास।

7

तुम्हें जो मन आए सो करे, हमें कहने का क्या अधिकार
विनय बस रही निरंतर यही, अमर हो शक्ति तुम्हारी देव,
भूल मत जाना अपनी टेक, भूलना केवल मेरा नाम,
तुम धरते-धरते ध्यान, हमारा बेड़ा होगा पार।

8

अर्चना करने की है चाह, चरण में अर्प का उत्साह,
पुजापा नहीं किन्तु है हाथ, बंदना कैसे होगी नाथ,
भिखारी आया मंदिर द्वार मांगता केवल यह वरदान-
चरणरज चर्चित भासित भाल, पदों में टिका रहे यह भाल।

रचनाकाल : अक्तूबर 1929
-वृन्दावनलाल वर्मा

3 comments:

दिगम्बर नासवा said...

भिखारी आया मंदिर द्वार मांगता केवल यह वरदान-
चरणरज चर्चित भासित भाल, पदों में टिका रहे यह भाल ..

Sundar rachna hai Vrandavan laal ji ki .. aapka bahut aabhaar is prastuti ke liye ...

Urmi said...

वाह! क्या बात है! लाजवाब प्रस्तुती!

Anonymous said...

shaandaar....bahoot khoob..

Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

A Silent Silence : Naani ki sunaai wo kahani..

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