Tuesday, April 5, 2011

तुम अगर नहीं आयीं

म अगर नहीं आयीं, गीत गा ना पाऊँगा|
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा ना पाऊँगा|

तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है,
बाँसुरी चली आओ, होट का निमन्त्रण है|

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है|

दूरियाँ समझती हैं दर्द कैसे सहना है?
आँख लाख चाहे पर होठ को ना कहना है|

औषधी चली आओ, चोट का निमन्त्रण है,
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|

तुम अलग हुयीं मुझसे साँस की खताओं से,
भूख की दलीलों से, वक़्त की सजाओं ने|

रात की उदासी को, आँसुओं ने झेला है,
कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है|

कंचनी कसौटी को खोट ना निमन्त्रण है|
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|


-कुमार विश्वास

8 comments:

सुज्ञ said...

शानदार अभिव्यक्ति है कुमार जी की!!

केवल राम said...

तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है,
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमन्त्रण है|

तुम अलग हुयीं मुझसे साँस की खताओं से,
भूख की दलीलों से, वक़्त की सजाओं ने|

आपकी गजल में बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्त हुए हैं एक अलग तरह का अंदाज बहुत पसंद आया आपका आभार

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

रात की उदासी को, आँसुओं ने झेला है,
कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है|

कंचनी कसौटी को खोट ना निमन्त्रण है|
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|


Bahut sundar magar kuch shabd trutiyaan rah gai hai unhe sudhaar le to aur prabhaawee banegee rachnaa .

Ravi Tiwari said...

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,


superbbb...........

Shekhar Suman said...

अभीअभी रश्मि दीदी से आपके ब्लॉग का पता पूछा और आप खुद ही चले आये मेरे ब्लॉग पर...ये केवल इत्तेफाक है क्या ???
कुमार सर की अच्छी कविता पढवाई आपने....
फोल्लो कर लिया है आता रहूँगा....:)

दिगम्बर नासवा said...

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है|

Lajawaab gazal .. bahut sundar bhaav ...

Kailash Sharma said...

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है|

बहुत सुन्दर रचना..शब्दों, भावों और संगीत का सुन्दर संगम..लाज़वाब

Vivek Jain said...

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद! महान कवियों की कृतियाँ हम सबको पसंद हैं, बस आप सबका आशीर्वाद चाहिए ताकि इन कृतियो को आप सबके साथ पढ़ सकूँ|
विवेक जैन