Wednesday, April 6, 2011

एक गीत और कहो

सरसों के रंग-सा
महुए की गंध-सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
होठों पर आने दो
रुके हुए बोल
रंगों में बसने दो
याद के हिंदोल
अलकों में झरने दो
गहराती शाम
झील में पिघलने दो
प्यार के पैगाम
अपनों के संग-सा
बहती उमंग-सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
मलयानिल झोंकों में
डूबते दलान
केसरिया होने दो
बाँह के सिवान
अंगों में खिलने दो
टेसू के फूल
साँसों तक बहने दो
रेशमी दुकूल
तितली के रंग-सा
उड़ती पतंग-सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का। -पूर्णिमा वर्मन

9 comments:

दिगम्बर नासवा said...

अपनों के संग-सा
बहती उमंग-सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का ...
पूर्णिमा जी का ये मधुर गीत ... प्राकृति की महक लिए ... भीनी भीनी प्रेम की फुहार से भीगा हुवा ... लाजवाब गीत ...

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन गीत।

Vivek Jain said...

नासवा जी और प्रवीणजी,आप का बहुत-बहुतधन्यवाद निरंतर मेरे ब्लोग पर आने के लिये।

Vijuy Ronjan said...

याद के हिंदोल
अलकों में झरने दो
गहराती शाम
झील में पिघलने दो

....
BAHUT KHOOB.

G.N.SHAW said...

बहुत ही सुन्दर गीत !

Ravi Tiwari said...

bahut khoob..likhte rahiye

DR.ASHOK KUMAR said...

बहुत ही शानदार गीत

Ashok Singh said...
This comment has been removed by the author.
Ashok Singh said...
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