Monday, April 18, 2011

प्रार्थना की कड़ी

प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी
बाँध देती है
तुम्हारा मन, हमारा मन,
फिर किसी अनजान आशीर्वाद में-
डूबन
मिलती मुझे राहत बड़ी !

प्रात सद्य:स्नात
कन्धों पर बिखेरे केश
आँसुओं में ज्यों
धुला वैराग्य का सन्देश
चूमती रह-रह
बदन को अर्चना की धूप
यह सरल निष्काम
पूजा-सा तुम्हारा रूप
जी सकूँगा सौ जनम अँधियारियों में, यदि मुझे
मिलती रहे
काले तमस् की छाँह में
ज्योति की यह एक अति पावन घड़ी !
प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी !

चरण वे जो
लक्ष्य तक चलने नहीं पाये
वे समर्पण जो न
होठों तक कभी आये
कामनाएँ वे नहीं
जो हो सकीं पूरी-
घुटन, अकुलाहट,
विवशता, दर्द, मजबूरी-
जन्म-जन्मों की अधूरी साधना, पूर्ण होती है
किसी मधु-देवता
की बाँह में !
ज़िन्दगी में जो सदा झूठी पड़ी-
प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी !
-धर्मवीर भारती

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर, प्रार्थना के स्वर।

आनंद said...

मेरा तो कविता कोष है यह ब्लॉग ....जो धीरे धीरे साहित्य कोष में तब्दील हो रहा है..साधुवाद जैन साहब आपके प्रयास और पसंद दोनों को नमन !

Vivek Jain said...

प्रवीन जी और आनंद जी,प्रोत्साहन के लिये आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!
-विवेक जैन

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर ....पावन भाव....