Saturday, April 16, 2011

मेरी ज़िन्दगी पे न मुस्करा मुझे ज़िन्दगी का अलम नहीं

मेरी ज़िन्दगी पे न मुस्करा मुझे ज़िन्दगी का अलम नहीं
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं

मेरा कुफ़्र हासिल-ए-ज़ूद है मेरा ज़ूद हासिल-ए-कुफ़्र है
मेरी बन्दगी वो है बन्दगी जो रहीन-ए-दैर-ओ-हरम नहीं

मुझे रास आये ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअतें
उन्हें ऐतबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ऐतबार-ए-सितम नहीं

वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िन्दगी वही मरहले
मगर अपने-अपने मुक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं

न वो शान-ए-जब्र-ए-शबाब है न वो रंग-ए-क़हर-ए-इताब है
दिल-ए-बेक़रार पे इन दिनों है सितम यही कि सितम नहीं

न फ़ना मेरी न बक़ा मेरी मुझे ऐ 'शकील' न ढूँढीये
मैं किसी का हुस्न-ए-ख़्याल हूँ मेरा कुछ वुजूद-ओ-अदम नहीं
-शकील बँदायूनी

2 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

vivek ji bhtrin gzal dhundh kar laaaye hai bdhaai. akhtar khan akela kota rajasthan

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह।